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दानिक संदर्भ
पारस्परिक सहयोग के आधार पर टिका हुआ है। मनुष्य में यदि संघर्ष का बीज है, नो उसमें सहयोग का बीज क्यों नहीं हो सकता? यदि वह नंघर्ष करने में स्वतन्त्र है, तो वह सहयोग करने में स्वतन्त्र क्यों नहीं हो सकता ? महावीर के सिद्धान्त का सार है कि मनुष्य संघर्प और सहयोग--दोनों के लिए स्वतन्त्र है, किन्तु जीवन में शांति को प्रतिष्ठा के लिये वह अपनी स्वतन्त्रता को संघर्ष की दिशा से हटा कर सहयोग की दिशा में मोड़ दे। हमारे जीवन में सवर्प के क्षण बहुत कम होते हैं, सहयोग के क्षरण बहुत अधिक।
महावीर ने मनुष्य की स्वतन्त्रता को कुंठित नहीं किया। उन्होंने उसके दिशा परिवर्तन का मूत्र दिया । वह मूत्र है-"मनुप्य अपनी स्वन्त्रता का उपयोग श्रेय की दिशा में करे, हर बुराई को अच्छाई में बदल डाले।