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महावीर की दृष्टि में स्वतन्त्रता का सही स्वरूप
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आय, कार्य और कारण, कर्ता और कृति का सम्बन्ध है । जहां यह सम्बन्ध है, वहां स्वतन्त्रता और परतन्त्रता की भी व्याख्या संभव है ।
स्वतन्त्रता का चिन्तन :
स्वतन्त्रता का चिन्तन दो कोटि के दार्शनिकों ने किया है । धर्म के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता का चिन्तन करनेवाले दार्शनिक व्यक्ति की आन्तरिक प्रभावों ( प्रात्मिक गुरणों को नष्ट करने वाले आवेशों) से मुक्ति को स्वतन्त्रता मानते हैं । राजनीति के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता का चिंतन करनेवाले दार्शनिक व्यक्ति की बाहरी प्रभावों ( व्यवस्था कृत दोषपूर्ण नियन्त्ररणों) से मुक्ति को स्वतन्त्रता मानते हैं । धर्म जागतिक नियमों की व्याख्या है, इसलिए उसकी सीमा में स्वतन्त्रता का सम्बन्ध केवल मनुष्य से नहीं, किंतु जागतिक व्यवस्था ह | राजनीति वैधानिक नियमों की व्याख्या है, इसलिए उसकी सीमा में स्वतन्त्रता का सम्बन्ध व्यक्तियों के पारस्परिक सम्वन्ध और संविधान से है । भारतीय धर्माचार्यो और दार्शनिकों ने अधिकांशतया धार्मिक स्वतन्त्रा की व्याख्या की । उन्होंने राजनीतिक स्वतन्त्रता के विषय में अपना मत प्रकट नहीं किया । इसका एक कारण यह हो सकता है कि वे शाश्वत नियमों की व्याख्या में राजनीति के सामयिक नियमों का मिश्रण करना नहीं चाहते थे । उन्होंने शाश्वत नियमों पर आधारित स्वतन्त्रता की व्याख्या से राजनीतिक स्वतन्त्रता को प्रभावित किया. किंतु उसका स्वरूप निर्धारित नहीं किया । स्मृतिकारों और पौराणिक पंडितों ने राजनीतिक स्वतन्त्रता की व्याख्या की है । उन्होंने वैयक्तिक स्वतन्त्रता को बहुत मूल्य दिया ।
पश्चिमी दार्शनिकों ने राजनीति के संदर्भ में स्वतन्त्रता और शासनव्यवस्था की समस्या पर पर्याप्त चिंतन किया । अरस्तू, एक्विनास, लाक और मिल आदि राजनीतिक दार्शनिकों ने वैयक्तिक स्वतन्त्रता को ग्राधार भूत तत्व के रूप में प्रतिपादित किया । दूसरी ओर प्लेटो, मैकेवली, हाव्स, हीगल और वर्क श्रादि राजनीतिक दार्शनिकों ने शासन व्यवस्था को प्राथमिकता दी ।
राजनीतिक दार्शनिकों की दृष्टि में वही व्यक्ति स्वतन्त्र है जो कर्तव्य का पालन करता है - वही कार्य करता है, जो उसे करना चाहिए । व्यक्ति के कर्तव्य का निर्धारण सामाजिक मान्यताओं और संविधान की स्वीकृतियों के आधार पर होता है । इस अर्थ में व्यक्ति सामाजिक और वैधानिक स्वीकृतियों का प्रतिक्रमण किये विना इच्छानुसार कार्य करने में स्वतन्त्र है | इस स्वतन्त्रता का उपयोग सामाजिक और ग्रार्थिक प्रगति में होता है । स्वतन्त्रता का अर्थ कषाय-मुक्ति :
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महावीर के दर्शन में स्वतन्त्रता का अर्थ है कषाय - मुक्ति । क्रोध, मान, माया और लोभ से मुक्ति | प्रवेशमुक्त व्यक्ति ही स्वतन्त्र क्रिया कर सकता है । गाली के प्रति गाली, क्रोध के प्रति क्रोध, अहं के प्रति ग्रहं और प्रहार के प्रति प्रहार यह प्रतिक्रिया का जीवन है । प्रतिक्रिया जीवन जीने वाला कोई भी व्यक्ति स्वतन्त्र नहीं हो सकता । चिड़िया जैसे अपने प्रतिबिंब पर चोंच मारती थी, बच्चे ने अपनी परछाई को पकड़ने का प्रयत्न किया और सिंह अपने ही प्रतिबिंब के साथ लड़ता हुआ कुएं में गिर पड़ा – ये सब प्रतिक्रियाएं