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भीतर की वीज-शक्ति को विकसित करें
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वातावरण वने । वह बीज अंकुरित हो, प्रस्फुटित हो और उसका एक विशाल वृक्षज्ञान-वृक्ष उजागर हो ।
___ अात्मा सर्वव्यापी है। छोटे, बड़े, पुरुप, नारी, जवान और बूढ़े सवमें आत्मा है किन्तु उसमें जो चेतना का बीज है; उसको अंकुरण का, प्रस्फुटन का वातावरण नहीं मिलता और वह अनेक-अनेक कारणों से दवा रह जाता है, उस बोज की तरह जिस पर एक के बाद एक परत चढ़ती जाती है वालू के उड़ते टीलों की तरह । वे परतें बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ जाती हैं कि किसी पुराने खण्डहर का सा आभास होने लगता है जिसका मलवा उस बीज पर गिर गया हो। कर्म के मलवे को हटायें :
फिर भी आप सब यह जानते हैं कि किसी मकान के मलवे के ढेर में भी बीज को वर्षा का पानी, अनुकूल वायु मिल जाये तो वह अंकुरित हो सकता है, उग सकता है। उसका मूल कारण है उसकी जीवनी-शक्ति, उसकी अंकुरण की क्षमता । उसमें योग्यता है उठने की । पर आवश्यकता है उस बीज पर से मलबा उठाने की, पत्थर, कूड़ा, करकट हटाने की।
हमको विचार करना होगा कि हमारी चेतना-शक्ति और हमारे चिंतन के बीज का प्रस्फुटन कैसे हो ? उन पर पड़े भार से वह कैसे मुक्त हो ?
यहां एक उदाहरण देना अप्रासंगिक नहीं होगा । खेत के पास ही एक मकान है। वह मकान ढह जाता है और उसका मलबा खेत के उस स्थान पर गिरता है जहां अच्छा सुधरा वीज बोया हुआ है। ऐसी स्थिति में गृहपति क्या करेगा ? निस्सन्देह, वह सबसे पहला काम उस मलवे को साफ करने का समझेगा।
ठीक वैसे ही, हम सबको आत्मशक्ति को प्रज्ज्वलित करने के लिए उस पर पड़ा मलवा साफ करना होगा। प्रश्न उठता है ? कि मलवा क्या है, कौनसा है ? वह मलबा है कर्म का।
स्वयं प्रयत्न करें:
उसको कौन हटायेगा? कोई मजदूर, कोई हमाल आकर हटायेगा क्या ? नहीं । उसको हटाने के लिये हमें स्वयं प्रयत्न करना होगा । हां, उस पुनीत कार्य में हम अपने मित्रों का सहयोग ले सकते हैं, ठीक वैसा ही सहयोग जैसा डिजाइनरों से, इन्जिनियरों से मकान या कुत्रा बनाते समय लिया जाता है ।
__ यदि गृहनिर्माता स्वयं कुशल हैं तो वह सबका मार्ग-दर्शन करेगा, अन्यथा वह किमी विशेषज्ञ से परामर्श करेगा और निर्णय लेगा। ठीक वैसे ही हमको अपनी आत्मशक्ति पर पड़े कर्म रूपो मलवे को हटाने का स्वयं प्रयत्न करना होगा । सहारे के रूप में परामर्श के रूप में, सहयोग के रूप में, मार्गदर्शन के रूप में हमें सद्गुरु और शास्त्रों से सहायता मिलेगी, निस्सन्देह मिलेगी।