________________
१५२
दार्शनिक संदर्भ
सद्गुरु और शास्त्र हमें कर्मरूपी मलबे को दूर करने का मार्ग बता सकते हैं किन्तु दूर करने का कार्य तो हमें स्वयं ही करना होगा । हमें स्वयं निष्ठापूर्वक उस कार्य में लगना होगा, प्रयत्नशील होना होगा तभी हमारी आत्मा में बैठा चेतना का अनन्त शक्तिशाली बीज अंकुरित होगा, अन्यथा नहीं।
जब तक उस पर से अज्ञान का आवरण नष्ट नहीं होगा, कर्म-भार नहीं हटेगा तब तक वह बीज न अंकुरित हो सकता है और न विकसित । हटाने की प्रक्रिया :
सुवाहु राजकुमार भी भगवान महावीर के चरणों में निष्ठापूर्वक इसी भावना से पहुंचते हैं । आवरण को हटाने की दृष्टि से । उस आवरण को हटाने की दृष्टि से जिससे उनको ज्ञान लाभ नहीं मिलता । उस आवरण को हटाने की प्रक्रिया बताते हुए 'स्थानांग सूत्र' में कहा गया है :
दोहिठाणेही आया नो केवलिपण्णतं धम्म
लमेज्ज सवण्याए । प्रारम्भे चेव परिग्गहे चेव । प्राणी दो कारणों से केवली के प्रवचन धर्म को भी सुन नहीं सकता।
गौतम गणधर ने जिज्ञासा से प्रश्न किया हे भगवन् ! वे दो वाधक कारण कौन से हैं ?
भगवान् महावीर ने जिज्ञासा शान्त करने हेतु कहा-प्रारम्भ और परिग्रह में उलझा हुआ जीव, डुवा हुया प्राणी जब तक इन उलझनों की बेड़ी को काटकर नहीं निकलता तव तक वह केवली प्रणीत धर्म को नहीं सुन सकता । यह बड़ा भारी वन्धन है । परिग्रह और आरम्भ का गठजोड़ जवरदस्त है । परिग्रह प्रारम्भ को छोड़कर नहीं जाता। उसका जन्म ही प्रारम्भ से है और वह प्रारम्भ का ही समर्थन करता है। आरम्भ से ही परिग्रह की वृद्धि होती है। परिग्रह भी अपने मित्र प्रारम्भ का बहुत ध्यान रखता है। परिग्रह जितना ध्यान प्रारम्भ की अभिवृद्धि का रखता है उतना 'संवर और निर्जरा' को बढ़ाने का नहीं। आरंभ-परिग्रह का गठजोड़ :
गहराई से विचार करने, गंभीरता से मनन करने पर ज्ञात होता है कि प्रारंभ और परिग्रह में मनुष्य का आकर्षण होता है । छोटा सा आरंभ चाहे वह खाने से संबंधित हो, चाहे वह निर्माण सम्बन्धी या कोई अन्य, मनुष्य स्वभाव से उसकी ओर झुकता है, शीघ्रता से आकर्षित होता है ।
किसी के घर में वालक का जन्म हुया । दादा धन के मामले में बड़े कठोर है, सोच समझकर व्यय करते हैं । पर विचार उठता है कि पौत्र के जन्म पर हजार-पांच सौ रुपया उत्सव पर, भोज पर, व्यय करना चाहिये। हजार-पांच सौ की योजना बनती है किन्तु खर्च पहुँचता है दो हजार के आस-पास । तब भी यही विचार आता है कि कुछ भी हो, गांव में, शहर में, समाज में नाम तो होगा।