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दार्शनिक सदर्भ
हमारे भीतर का बीज :
हमारे भीतर, हमारी आत्मा में भी चेतना का एक बीज है और संत-सेवा, सदशास्त्र-श्रवण, मनन, अध्ययन उसको अनुफूलता देने वाला शुभ वातावरण है । वट वृक्ष के वीज में विस्तार शक्ति है, उससे हजारों लाखों पत्ते, शाखाएं-प्रणाखाएं फूटती हैं, फलफूल लगते हैं और समय पाकर लाखों-अरबों बीज उत्पन्न होते हैं। क्या हमारे भीतर का चेतना का वीज उस स्पष्ट दिखाई देने वाले वट वृक्ष के बीज से कम सशक्त है ? बीज का अनादर न करें :
क्या आपने किसी किसान को वीज का अनादर करते देखा है ? वह छोटे से छोटे अच्छे वीज को संभालकर रखता है, क्योंकि वह उस वीज की शक्ति को जानता है, उसके मोल को समझता है । उसे ज्ञात है कि सरसों के एक बीज से कुछ काल वाद उसका खेत पीले-पीले फूलों से लहलहा उठेगा । एक बीज से अनन्त की नृष्टि का रहस्य उसे विदित है।
आप गांवों में उस किसान को देखें जिसके पास सौ-पत्रास आम के पेड़ हैं। वह अपने आपको किसी बड़े जमींदार जागीरदार से कम नहीं समझता । आठ नौ महीने तक उसको कुछ नहीं मिलता पर वह अपने पेड़ों की सार-संभाल में लगा रहता है क्योंकि वह जानता है कि ऋतु आते ही उसका एक-एक पेड़ हजारों ग्राम देगा। इसी जान के कारण, उसी आशा के कारण वह उन पेड़ों की देखभाल करता है । ये आम के पेड़ और उनसे प्राप्त होने वाले सैकड़ों-हजारों फल एक नन्हें से वीज की विस्तार-शक्ति के प्रतीक ही तो हैं। सूक्ष्म प्रात्मा : अनन्त गुरण :
हमारे शरीर में रहने वाली प्रात्मा कितनी नन्ही है ? आत्मा बड़ी है कि देह ? देह वड़ी है कि आत्मा ? निःसन्देह देह मोटी है और आत्मा छोटी अत्यन्त सूक्ष्म । इतनी सूक्ष्म कि वह आंख की काली टीकी ने अनन्त-अनन्त गुणा छोटी, किन्तु उसके गुण अनन्त हैं । यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। ज्ञान-वृक्ष उजागर हो :
आत्मा अरूप है । वह बीज से अनन्त गुणा छोटी है किन्तु उसकी शक्ति, उसका सामर्थ्य अपार है । वट-वृक्ष का वीज और वट-वृक्ष दोनों की तुलना में वह सहस्त्रगुणा अधिक है । विश्व में अनेक स्थानों पर बहुत पुराने वट वृक्ष हैं उनके नीचे अनेक लोग विश्राम कर सकते हैं, अनेक प्राणियों को वह छाया दे सकता है। किन्तु प्रात्मा और उस वीज की कोई तुलना नहीं की जा सकती । आत्मा की चेतनावस्था उसे अनेकानेक गुणा विस्तार, शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करती है । हमारी प्रात्मा और हमारे अात्मचिंतन, आत्म-जागरण के समक्ष उस वट वीज और वृक्ष का विस्तार नगण्य है। हमारी देह में जो आत्मा है जो अत्यन्त मूक्ष्म जीवनी शक्ति है उसमें बट-वृक्ष की ही भांति शक्ति और चेतना का बीज है । आवश्यकता आज इस बात की है कि उस बीज के लिये उपयुक्त-योग्य