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भीतर की बीज-शक्ति को
विकसित करें! • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म० सा०
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चेतन तत्त्व ऊपर उठे :
'मैं हूँ की अनुभूति चेतना का लक्षण है। दुःख इस बात का है कि आज चेतन तत्त्व पर जड़ तत्त्व हावी होता जा रहा है। मानव जड़ पदार्थों के विकसित यन्त्रों का दास बनता जा रहा है । हमारा यह प्रयत्न होना चाहिए कि हम जड़ तत्त्वों के पराधीन न हों, उनसे पराजित न हों। उन्हें स्वाधीन बनाकर रखें। इसके लिए धर्म-साधना और स्वाध्याय-सत्संग की बड़ी आवश्यकता है। इसी से हमें यात्मचेतना को पहचानकर, उसे विकसित करने की शक्ति और प्रेरणा मिलती है । सेवा का अर्थ :
शास्त्रों में प्रसंग आता है कि राजकुमार सुवाह और अदीनशत्रु महाराज सामान्य प्रजाजनों की ही भांति श्रमण भगवान् महावीर की सेवा करते हैं । उनकी सेवा का अर्थ है-तीर्थकर भगवान के दर्शन करना, उनकी मंगलवाणी का श्रवण करना, उनके वीतराग स्वरूप का दर्शन करना और मन, वचन, कर्म से उनकी वंदना करना । इन सबके मूल में हैं जीवन का धर्म मार्ग । उसका प्रथम चरण है-सन्तों की सेवा और सदशास्त्रों का श्रवण, अध्ययन, मनन तथा ज्ञानोपार्जन । यही जीवन का बीज मंत्र है। बीज की शक्ति :
आप सब जानते हैं कि छोटे से छोटा बीज भी बड़े से बड़े वृक्ष को जन्म देता है । छोटा बीज निर्माण के विशाल कार्य का कारण बनता है । वट का ही उदाहरण लीजिये । उसका वीज छोटा सा होता है किन्तु उसका विस्तार बड़ा और वर्षों तक जीवित रहने वाला वृक्ष । वीज से सहस्रों गुणा उसका विस्तार दिखाई देता है । अतः यह विचारणीय हैं कि निर्माण का, विस्तार का कारण क्या है ? कौन है ?
आप स्वयं कहेंगे कि उसका मूल है बीज । यदि बीज न हो तो मूल वृक्ष किससे पैदा होगा? उसके पत्ते, शाखाएं, प्रशाखाएं, फल, फूल,जड़ कहां से उत्पन्न होंगे? ये सब बीज की ही सृष्टि है । अच्छा वीज, अनुकूल परिस्थितियां, सद् वातावरण और संयोग से ही समय पाकर वह विस्तार पाता है । अतः यह स्पष्ट है कि बीज एक महान् शक्ति है ।