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वर्तमान नेतृत्व महावीर से क्या सीखे ?
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प्रामाणिकता व वाक्संयम :
हमारे नेतृत्व को मितभापी होने का प्रयास करना चाहिये । स्वतंत्रता के पश्चात् २५ वर्प के भीतर ही देश में निराशा का वातावरण बनाने में हमारे नेतृत्व का अतिभाषी होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है । होता यह है कि नेता के भाषण में आम जनता को जो सब्ज वाग का चित्र (शान्दिक) बताया जाता है उससे जनता में इच्छा, आकांक्षा उभरती है और यदि उसकी पूर्ति नहीं होती तो निराशा का जन्म होता है । जैसा ऊपर उल्लेख किया गया है, नेतृत्व का व्यक्तिगत जीवन साधनामय हो तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है । भगवान् महावीर से हमारा नेतृत्व क्या शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकता ? यदि वह चाहे तो सब कुछ सीख लेकर धरती पर आदर्श मानवीय वातावरण का निर्माण कर सच्चे लोकराज की स्थापना कर सकता है।