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वर्तमान नेतृत्व महावीर से क्या सीग्वे ?
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Statesman is an individual who thinks that he belongs to the nation, if nation will survive he will survive while politician is an individual who thinks that nation belongs to him., if he will survive nation will survive नेतृत्व व्यक्ति-निरपेक्ष हो :
वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार राज्य का धर्म निरपेक्ष (अधार्मिक नहीं) होना यावश्यक है उसी प्रकार से नेतृत्व को व्यक्ति निरपेक्ष होना चाहिये था, किन्तु नेतृत्व के आसपास या तो भाई-भतीजा का जमघट है या बुशामदियों (चाटुकारियों का, इस कारण शासकीय नेवा में भरती, चयन आदि के प्रति जन-मानस में विश्वास का भाव जाता जा रहा है। नेतृत्व, महावीर से यह सीखे :
सिद्धान्तहीन राजनीति के इस युग में निराशा ही निराशा लगती है । जिस प्रकार भगवान महावीर के जीवन में ज्ञान और कर्म का सामन्जस्य था उसी प्रकार यदि हमारा नेतृत्व सामन्जस्य स्थापित कर सके तो निश्चित रूप से शासकीय नेतृत्व सही दिशा की योर प्रयाण कर सकता है। गांधीजी में दार्शनिकता तथा कर्मयोगित्व का यह सामंजस्य या । निराणा के युग में इसकी कम सम्भावना है कि आज का नेतृत्व भगवान् महावीर से स्वयं कोई शिक्षा ग्रहण करेगा । यह पृथक बात है कि समस्याओं के उलझते जाने के परिणामस्वरूप नेतृत्व को भगवान् महावीर के सिद्धान्तों तथा जीवन से प्रेरणा प्राप्त करने तथा उस अनुसार वर्तन करने को बाध्य होना पड़े। भगवान् महावीर के निवारण को २५०० वर्ष हो गये हैं। उनके अनुयायियों में कई राजा, कई मंत्रीगण भी थे। हालांकि तत्कालीन मंत्री राजा की इच्छा पर ही अधिक निर्भर करते थे। कई गणतंत्र भी थे किन्तु इस व्यवस्था का विस्तृत विवरण नहीं मिलता । भगवान् महावीर के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन तथा उसीका गुरु विष्णु गुप्त था जो चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध है । कहा जाता है कि उस विद्वान् ने ३,००० श्लोकों का एक अन्य 'कौटिल्य अर्थ शास्त्र' की रचना की थी। उसने राजा तथा मंत्री की विशेषता बताते हुए कहा कि मंत्री को दृढ़ चित्त, शील सम्प्रिय, प्रान, दक्ष आदि होना चाहिये । आज के नेतृत्व को भगवान् महावीर के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करके तथा उनके द्वारा प्ररूपित सिद्धान्तों पर अमल करके देश में एक ऐसा सात्विक वातावरण निर्मित करना चाहिए कि जिससे नागरिकों में उसके प्रति प्रादर-श्रद्धा उत्पन्न हो तथा सब सुख अनुभव कर सकें । जितना जितना हम इस दिशा में सोचते हैं, हमें इस बात की अधिक आवश्यकता प्रतीत होती है कि भगवान महावीर के सिद्धान्तों की आज अन्य किसी युग की अपेक्षा अधिक आवश्यकता है। कथनी-करनी की एकता :
भगवान् महावीर के कार्यकलाप का हम आकलन करें तो ज्ञात होगा कि उन्होंने थोथी मान्यताओं, विचारहीन रूढ़ियों का विरोध किया तथा सामाजिक, आर्थिक विषमता