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राजनीतिक संदर्भ
प्रकार के तरीके अपना कर असत्यता का पोपरण करने का प्रयत्न किया जाता है तब भी सफलता न मिले और जांच का परिणाम विपक्ष में हो तो पक्षपात या इसी प्रकार की ग्रन्य बात कही जाती है । अंग्रेजी में कानूनी जगत में एक उक्ति प्रसिद्ध है
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"Deny everything, don't concede, if defeated, plead fraud."
नेतृत्व शंका से परे हो :
प्रश्न यह है कि उपर्युक्त परिस्थिति में क्या कोई नेतृत्व गांधी जैसी श्रद्धा तथा जवाहर जैसा प्यार देश से प्राप्त कर सकता है ? कहा जाता है कि सार्वजनिक जीवन से सम्बद्ध लोग कांच के मकान में रहते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि उनकी प्रत्येक बात पर जन-मानस की दृष्टि रहती है तथा उनमें सार्वजनिक जीवन प्रभावित होता है । इस कार यह अत्यन्त आवश्यक है कि उनका व्यवहार शंका से परे हो । यदि किसी के व्यवहार के सम्बन्ध में जन-मानस में शंका फैल जावे और जिससे जन-मानस क्षुव्ध होता नजर आये तव रामायण काल की भगवती सीता की घटना के अनुसार क्या उसका समुचित त्याग उचित नहीं कहा जा सकता है ? किन्तु ग्राज हमारे राष्ट्रीय चरित्र में ऐसा उदाहरण लक्षित नहीं होता है ।
नेतृत्व केवल राजनैतिक रह गया :
इस प्रकार के नेतृत्व का परिणाम देश और समाज पर स्पष्ट दीख रहा है । स्वतंत्रता- पूर्व के काल मे राष्ट्रीय नेतात्रों के कार्यकलापों में जो सात्विकता विद्यमान थी, जीवन-पद्धति में जो सरलता, सादगी और प्रामाणिकता के प्रति ग्राकर्षरण था वह प्रतिदिन कम होता जा रहा है । ग्राज देश को पाश्चात्य जीवन-पद्धति का ग्रंधानुकरण करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है । जिस देश हिंसा के द्वारा स्वतंत्रता अर्जित की है उसी देश का वातावरण ग्राज हिसामय होता जा रहा है। छोटे-छोटे प्रश्नों को हल करने के लिये हिंसा, तोड़-फोड़, तालाबंदी ग्रादि का प्रयोग किया जा रहा है । व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करने का कार्य, राजनीतिक दल तथा उनके अनुयायी द्वारा होने की घटनाये सबको ज्ञात हैं । हिंसा के हामी इस देश में सभी से ( जिसमें ग्रहिसक तथा सात्विक खानपान के हामी भी सम्मिलित है) टैक्स का धन प्राप्त करके प्रसात्विक ग्राहार का प्रचार कराया जा रहा है, उसे शासकीय माध्यम से प्रोत्साहित किया जाता है। ब्राज़ के वातावरण के लिहाज से यदि कोई सात्विकता, प्रामाणिकता की बात करता है तो वह युगह्म घोषित कर दिया जाता है । गांधीजी के युग की शराबबंदी तथा श्रम निष्ठा के रूप में ग्रादतन खादी पहनने का नियम भी ग्राज युग वाह्य माना जाता है । वास्तविकता यह है कि नेतृत्व अधिकार-मद सम्पन्न है । इस अविकार मद के कारण हमारे नेतृत्व के जीवन मूल्य सारे परिवर्तित हो गये हैं । सरलता सादगी का नामोनिशान नज़र नहीं आता । शरावबंदी का आग्रह प्रतिदिन क्षीण होता जा रहा है। कई के व्यक्तिगत व्यवहार में वह एक अभिन्न वस्तु हो गई है। श्रम निष्ठा निःशेप हो गई है । आज का नेतृत्व सच्चे अर्थ में केवल 'राजनैतिक' रह गया है । उसमें से राष्ट्रीयता गायव हो गई है । एक विचारक के ये शब्द इसी तथ्य को प्रकट करते हैं