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राजनीतिक संदर्भ
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क्रिया मुक्त ज्ञान :
ग्राचार्य उमास्वामि ने स्वविरचित 'तत्वार्थसूत्र' में स्पष्ट कहा है कि "सम्यक् दर्शन, ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ।” दर्शन क्या है ? श्रद्धा विश्वास ( Right belief ), ज्ञानविवेक (Right knowledge ) और चारित्र्य से तात्पर्य है श्राचरण ( Right conduct ) व्यक्ति-विकास में परम आवश्यक हैं । क्रिया मुक्त ज्ञान ही श्रेष्ठ है । क्रिया से रहित ज्ञान
लंगड़ा है, भार है |
गणित की भाषा में :
क्रिया - ज्ञान== रूढ़ि, क्रिया + ज्ञान = पुरुषार्थ ।
मैं मानता हूं कि पुरुषार्थ करने के लिये किसी ग्रास्था की ग्रपेक्षा हुआ करती है । कार्य के प्रति विश्वास, उसके प्रति पूर्ण ज्ञान और तज्जन्य क्रियाचरण वस्तुतः जागतिक प्रोर जागतेतर उपलब्धियों की प्राप्ति में परम सहायक है ।
आत्मीय अनुशासन :
इस प्रकार महावीर की दृष्टि में लोक कल्याणकारी राज्य मात्र परिधियों का पोपक नहीं हो सकता, वहां प्राणियों को अभय, अशन, प्रौषधि और ज्ञान प्राप्त करने की पूर्ण सुविधायें होंगी । वहां जीवन व्रत साधना से परिमार्जित होगा । शारीरिक शासन की अपेक्षा आत्मीय अनुशासन से व्यक्ति-व्यक्ति में समता सौहार्द्र तथा स्वतंत्रता परक प्रतीतियां होंगी । वहां पोपण होगा -- शोपरण नहीं । 'स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो' की भावना का साकार उदाहरण होगा । बड़ी बात यह कि वहां प्रत्येक व्यक्ति में सुख-दुःख का सम्यक् बोध होगा ।
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