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सामाजिक संदर्भ
( ४ )
नवीन समाज-रचना स्याद्वाद पर आधारित हो
• श्री जवाहरलाल मूणोत
भारत के पढ़े-लिखे वर्ग के लिये, यह विषय-वस्तु कुतूहल का विषय प्रतीत होगा। भला महावीर-विचारधारा का आधुनिक युग की समस्याओं से ताल-मेल कैसे हो सकता है ? वे पूछेगे-हम मानते हैं, महापुरुप थे श्री महावीर। अपने युग में उन्होंने समाज की मंरचना में बहुत महत्त्वपूर्ण योग-दान दिया होगा । आज भी लाखों-लाखों लोगों के लिए वे भगवान तीर्थकर हैं। यह सब तो ठीक है लेकिन यह बतलाइये कि इस युग की जटिल समस्याओं के लिये हम महावीर के पास कैसे जायें ? उससे क्या होना जाना है ?
इस प्रकार के विचारों को आप अनदेखा नहीं कर सकते । अगर महावीर के महत्त्व को आधुनिकता के संदर्भ में समझना-परखना है तो इन लोगों की शंकाओं का जवाब देना ही होगा । केवल श्रद्धालु जनता के मन पर पड़ी महावीर की छाप से ही तो महावीर की इस युग की असंदिग्ध उपादेयता को जांचा नहीं जा सकता।
__मैंने जिस शंका की ओर संकेत किया है, उसका पहला और प्रमुख नतीजा यह निकलता है कि हमारे पढ़े-लिखे प्रबुद्ध वर्ग के लिए, महावीर केवल एक ऐतिहासिक महत्त्व के व्यक्ति बन गये हैं । पर हमें स्मरण रखना चाहिये कि महावीर इतिहास के एक अध्याय नहीं, मानव-जीवन को ज्ञान द्वारा परिष्कृत करने के शाश्वत हथियार हैं। महावीर का इस युग के लिए सबसे अधिक समीचीन और उपयुक्त संदर्भ है-अनेकांत अथवा स्याद्वाद । आप कहेंगे, इस युग की (और वस्तुतः प्रत्येक युग की) समस्या मूलरूप से हिंसा की ही है। पिछले पांच हजार वरसों के आदमी के इतिहास का सदा हरा अध्याय केवल हिंसा का है । पांच हजार वरसों में आदमी ने कई हजार लड़ाइयां लड़ी हैं और जैसे-जैसे संहारक शक्तियां प्रगति करती गई हैं, संहार का ताण्डव विराट् होता जा रहा है। अगर महावीर वाणी की आज पुनस्थापना करनी है तो उनके अहिंसा के उपदेश का ही व्यापक प्रचार करना होगा।
पर इस सम्बन्ध में मेरी विनती है कि संदर्भहीन अहिंसा की बात कम गले उतरेगी। इसके लिए हमें सोचना होगा कि आखिर हिंसा कहां जन्म लेती है ? समाज में, व्यक्ति के मन में, उसकी शिक्षा-दीक्षा में ? और अगर हिंसा का जन्म इस जटिल सामाजिक परिवेश में पैदा होता है, पनपता है, तो उसे कैसे समाप्त करेंगे ? इसके लिए मानसिक वैचारिक हिंसा की प्रवृत्ति को रोकना होगा।
मैं आप लोगो का व्यान, इसी संदर्भ में, एक महत्त्वपूर्ण बात की ओर खींच रहा है। संसार की शिक्षा, संस्कृति और वैज्ञानिक विकास की सार्वदेशिक संस्था यूनेस्को