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सामाजिक संदर्भ
(२) अध्यात्मवाद के द्वारा मानव-जीवन
संतुलित किया जा सकता है • डॉ० जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल
तीर्थकर महावीर मानव संस्कृति के प्रकाशस्तम्भ थे। सर्वांगीण जागतिक विकास उनका ध्येय था । उनके हृदय में प्राणीमात्र के लिए सहानुभूति थी। इस प्रकार उनका व्यक्तित्व अलौकिक था, चरित्र पूज्य और निष्कलंक था। उनका आदर्श जीवन हमें वर्तमान में भी महती प्रेरणा प्रदान करता है । उन्होंने उस युग में भी उदार दृष्टि से ही धर्मापदेश दिया । व्यावहारिक दृष्टि से उन्हें जैन तीर्थ संचालक के नाते जैन कहा जा सकता है किन्तु उन्होंने जाति, समाज, देश, काल और साम्प्रदायिकता जैसी सीमाओं से ऊपर उठकर प्राणी मात्र के लिए दिव्योपदेश प्रस्तुत किये । उनका चिन्तन जीवमात्र के लिए था। उन्होंने कहा-'जियो और जीने दो' । जैसा तुम्हें जीने का अधिकार है वैसा ही दूसरे जीवों को भी है। अतः किसी जीव को सताना पाप है। वे महापुरुप थे, अतः उन्हें सम्प्रदाय के वन्धन कसे वांध सकते थे। उनका जीवन सत्य के शोधन एवं रहस्योद्घाटन में ही लगा था।
महावीर की अहिंसा तत्कालीन परिस्थितियों में जीव दया का अनुचिंतन मात्र ही न थी। उन्होंने उसे मानस की गहराई में जाकर अनुभव किया। उनकी अहिंसा आत्मा का सहज स्वभाव होने के कारण परमधर्म कहलाई। आधुनिक युग में गांधीजी ने भी महावीर को अहिंसा को अपनाकर अपनी प्रात्म-दृढ़ता के द्वारा एक सैनिक शक्ति वाले विशाल साम्राज्य को चुनौती दी। उनकी अहिंसा हिंसक में भी अहिंसक भाव उत्पन्न करने वाली थी। अतः वह व्यावहारिक जीवन में सुख-शांति की जनक थी। गांधीजी के सफल अहिंसक आन्दोलन को देखकर विश्व के अनेक गुलाम देशों ने इसे अपने स्वातन्त्र्य संग्राम में अपनाया और विजय प्राप्त की। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इस अहिंसा में धीरता, वीरता एवं दृढ़ता विद्यमान है । इसमें वह आत्मतेज विद्यमान है जो शत्रु के हिंसक भावों को भी निरस्त्र करने में समर्थ है । महावीर की अहिंसा अत्यन्त व्यापक एवं मानव जीवन का मूलमंत्र थी। वे देश में अहिंसक क्रांति करना चाहते थे और इसमें उन्हें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई । उनका मन्तव्य था
अहिसा-प्रेम का विस्तार हो, सुख-शांति का समन्वय हो। आज विश्व-मानव अणु-युद्ध के कगार पर खड़ा है। जरा सी हिंसा भड़कने पर विश्व युद्ध प्रारम्भ हो जाने पर विश्व मानव का पूर्ण विनाश अवश्यंभावी है । हिन्दी के प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में
___भयभीत सभी को भय देता, भय की उपासना में विलीन : . हिंसा भयभीत का स्वभाव है, अहिंसा निर्भीक का सहज भाव है ।