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अध्यात्मवाद के द्वारा मानव-जीवन संतुलित किया जा सकता है
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अनका
महावीर ने तीस वर्ष तक उपदेश दिया, हिंसा बन्द हो गई, स्त्रियों और शूद्रों को धार्मिक एवं सामाजिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई । आज भी हम महावीर के उन प्रभावक उपदेशों का अनुमान कर सकते हैं और उनसे प्रेरणा लेकर नवीन समाज की रचना कर सकते हैं। दो विश्व युद्धों से पीड़ित मानवता का उद्धार अहिंसक विचारधारा से ही हो सकता है । अाज का विज्ञान हिंसक विचार धारा के लोगों के हाथ में पड़कर विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। आज के इस अशांत वातावरण में, जव जीवन के मूल्य बदल रहे हैं, सर्वत्र उथल-पुथल है, विचारों में अस्थिरता बढ़ती जा रही है और नैतिकता तो कर्पूर की भांति उड़ी जा रही है-महावीर की आध्यात्मिकता एवं उससे उद्भूत सिद्धान्त मानव को त्राण प्रदान कर सकते हैं । महावीर के प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार हैं :
(१) अहिंसावाद-जियो और जीने दो। (२) अनेकान्त और स्याद्वाद-विचार के क्षेत्र में भी अहिंसक बनो। . (३) कर्मवाद-कर्मो को सुधारने से ही हम सुखी वन सकते हैं। (४) अपरिग्रहवाद-इसी को सच्चा समाजवाद कह सकते हैं ।
(५) अध्यात्मवाद-विना आत्मा के शरीर अमंगल रूप है, इसी प्रकार आध्यात्मिकता के विना हमारा चिन्तन छिछला एवं जड़ है।
अनेकान्त के द्वारा जटिल विरोधी समस्याएं भी सहज में हल की जा सकती हैं। समस्त वस्तुएं अनन्त धर्मात्मक हैं । अतः एक बार में ही हम उनके अनन्त धर्मों को नहीं जान सकते । एकान्त 'ही' का समर्थक है तो अनेकान्त 'भी' का समर्थक है। अनेकान्त सिद्धान्त सत्यालोचक है और यह हमें दूसरों के साथ मिलजुलकर रहना सिखाता है ।
कर्मवाद का सिद्धान्त स्वरूप में अत्यन्त सूक्ष्म और गहन होने पर भी अनुभव गम्य एवं बुद्धिगम्य है । 'प्रत्येक प्राणी जो कर्म करता है, वही उसका भाग्य विधाता है। यह सिद्धान्त हमें असत् मार्ग से हटाकर सत् मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है । संसार में ज्ञानी-मूर्ख, सुखी-दुखी, धनी-निर्धन, दीर्घायु-अल्पायु, आदि विभिन्न प्रकार के मनुष्य दिखाई पड़ते हैं । इस विभिन्नता में कर्म ही कारण है । जीव का तीव्र, मध्यम और मन्द कपायी होना, भावों द्वारा गृहीत कार्माण-वर्गणाओं का अलग-अलग व्यक्ति द्वारा भिन्न परिणमन होता है। उसी के अनुसार वे सुखी या दुःखी बनते हैं। कर्म जाल से मुक्त होने के लिए हमें दर्शन, ज्ञान और चरित्र्य की तेज तलवार प्रयुक्त करनी होगी । जीव की आत्म मलिनता और निर्मलता के अनुसार कर्मवन्धन की हीनता एवं प्रकर्प में अन्तर पड़ता है। .. महावीर का अपरिग्रहवाद तो समाजवाद का सर्वाधिक सफल आधार वन सकता है। प्रत्येक व्यक्ति आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करे। अपरिग्रह की प्राज जन-जीवन में जितनी आवश्यकता है उतनी. शायद पहले कभी न रही होगी । श्राज के जीवन में परिग्रह का ताण्डव नृत्य मानवता की जड़ें हिला रहा है । अाज को विपम परिस्थितियो में संघर्ष का अन्त अपरिग्रहवाद के द्वारा किया जा सकता है । गांधीजी ने