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________________ annaimurm.. . . . . . . . .. . ! भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। [४९ छठे पिंडशुद्धि अधिकारमें शुद्ध आहार लेनेके नियमोंका कथन है । उद्गम, उत्पादन, अशन, संयोजन, परिमाण, अंगार, धूम, कारण इन आठ दोषोंसे रहित भोजन ही साधुजनोंको ग्रहण करने योग्य बताया है । आचार्यने इन दोषोंकी व्याख्या करके इनके भेद प्रतिभेद भी विशाल रूपसे वर्णन किये हैं, और बताया है कि साधुको किसके हाथका, किस प्रकारका, किस निमित्तसे, और किस विविसे आहार लेना या न लेना चाहिये। सातवें षडावश्यक अधिकारमें नियमपूर्वक साधुके पालने योग्य सामायक, चतुर्विशति स्तोत्र, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग, षडावश्यकोंका विस्तृत वर्णन है जिनके यथाविधि पालन करनेसे साधुजन कर्मोंकी निर्जरा करके अविनाशी पद प्राप्त कर लेते हैं। आठवें द्वादशानुप्रेक्षा अधिकारमें साधुओंकी निरंतर चिंतन करने योग्य अनित्यादि बारह भावनाओंका बृहद् व्याख्यान है। नवे अनगार भावनाधिकारमें आचार्यने साधुओंकी शुद्ध भावनाओंकी व्याख्या की है और कहा है कि जो साधु लिंग, व्रत, बसति, विहार, भिक्षा, ज्ञान, उत्झन (शरीर संस्कार त्याग ), वाक्य, तप और ध्यान सम्बंधी दश प्रकार शुद्धियोंसे युक्त मुन्याचारात्मक शास्त्रका मनन पूर्वक अध्ययन करता है वही मोक्षका पात्र है। जो अपने जीवनको नश्वर और परमार्थ रहित जानकर समस्त भोगोपभोगका परित्यागी, जन्म मरणके दुःखोंसे भयभीत होकर, जिन प्रणीत द्वादशांग प्रवचनकी श्रद्धा धारण करता है वही अपने ध्येयको प्राप्त कर सकता है, फिर उपर्युक्त लिंगादि दश शुद्धियोंका लक्षण भेद'
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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