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________________ ४८] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। तथा दीक्षागुरुसे नम्रतापूर्वक पृछकर लेना, (८) छंदन अर्थात् पुस्तकादिको देनेवालंके अभिप्रायके अनुकूल रखना, (९) निमंत्रण अर्थात् अग्रहीत द्रव्यको सत्कारपूर्वक सुरक्षित रखना, (१०) उपसंयत अर्थात् गुरुकुल ( आन्नाय) के अनुकूल आचरण करना । दिनरातके समय प्रतिक्षणि नियमादिकका निरन्तर पालन करना पदविभागिक समाचार है। गुरुसे आज्ञा लेकर एक दो अथवा तीन साधुओं के साथ शास्त्रक विशेषज्ञ किसी आचार्यके समीप जाय, मार्गमें कोई पुस्तक या शिप्य या पुस्तक सहित शिष्य मिल जाय तो उसे गुरुके पास लेजाय ऐसा वर्णन करके आचार्यवरने आगंतुक मुनियों के प्रति सविनय व्यवहार करनेका आदेश किया है। और कहा है कि मुनियोंको आर्यिकाओंकी वसतिकामें ठहरना, बैठना, सोना, स्वाध्याय करना आदि वर्जनीय हैं। इसी प्रकार आर्यिकाओंके आचार और परस्पर व्यवहारका स्पष्ट निरूपण किया है। पांचवे पंचाचाराधिकारमें सम्यक्प दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तप-आचार, और वीर्याचार, इन पांच आचारोंका और उनमें लगनेवाले अतीचारों (दोपों) का कथन किया है, सम्यक्त्वका लक्षण और उसके अंगोंका फिर श्रद्धेय नो पदार्थोंका और उनके मेदोपभेदका विस्तृत वर्णन है । यह भी प्रतिपादन किया है कि जैसे चिकने शरीरपर धूल चिपट जाती है इसी प्रकार आत्मासे कर्मवर्गणा- . ओंका बंध होता है । अन्तमें इन: पंचाचारों के नियमपूर्वक पालन करनेका फल मोक्षप्राप्ति बताया है।
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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