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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य |
[ ४७ और क्षमावनी अर्थात् जिनके प्रति अयोग्य व्यवहार किया हो उनसे क्षमा प्रार्थना करनेका वर्णन किया है। फिर त्रिविधमरणका निरूपण किया है कि असंयमी सम्यकदृष्टिके मरणको वालमरण, संयतासंयत श्रावक मरणको चाल पंडित मरण और संयमी मुनिं (केवली पर्यंत ) के मरणको पंडित मरण कहते हैं । इस त्रिविध. मरणके कारणोंकी और संसारभ्रमणकी व्याख्या की है, तथा मुनियोंको सावधानी से यत्नपूर्वक सन्यास मरणका आदेश किया है। आचार्य कहते हैं कि शास्त्रोक्त विधिके अनुसार समाधिमरण संसारभ्रमणसे छूट जानेका कारण है ।
तीसरे संक्षेपतर प्रत्याख्यानाधिकारमें भी उपर्युक्त प्रतिक्रमणादिका भावपूर्ण संक्षिप्त कथन है ।
चौथे समाचार नामाधिकारमें समाचार अर्थात् सम्यक् आचाका वर्णन है जो औधिक और पद विभागिक दो प्रकार है । औधिक समाचार के दश भेद हैं- ( १ ) इच्छाकार अर्थात् शुद्ध परिणामों में स्वेच्छापूर्वक प्रवर्तन, (२) मिथ्याकार अर्थात् व्रतादिकमें अतीचार होनेपर अशुभ परिणामोंमें मन, वचन, कायरूप त्रियोगकी निवृत्ति, ( ३ ) तथाकार अर्थात् सूत्र ( शास्त्रों) के अर्थग्रहण करनेमें आप्त वचन तथेति (ऐसा ही है ) कहना, ( ४ ) निषेधिका अर्थात् किसी स्थानमें वहांके रहनेवालों या मालिकसे पूछे विना प्रवेश या वहांसे गमन न करना, (५) आसिका अर्थात् सम्यकदर्शनादिमें स्थिर भाव रखना, (६) आपृच्छा अर्थात् शास्त्राध्ययनमें गुरुसे विचारपूर्वक प्रश्न करना, (७) प्रतिपृच्छा अर्थात् पुस्तक, कमंडल आदि किसी साधर्मी