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... भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य।... [४१ श्रीमद् कुन्दकुन्दाचार्य
प्राप्त रचनाओंका भावाशय।
(१) वारस अणुवेख्खा
(द्वादश अनुप्रेक्षा) इस रचना द्वारा ९१ गाथाओंमें आचार्यवरने अनित्य, अशरण, 'एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आश्रव, सम्बर, निर्जरा, बोध
और धर्म इन बारह भावनाओंका विस्तृत वर्णन किया है। जिनका कर्माश्रव रोकनेके लिये प्रत्येक मनुष्यको निरन्तर चिन्तन करना आवश्यक है।
अनित्य । आत्मद्रव्यकी प्रधानताको लक्ष्य करके श्रीवर्य कहते हैं कि संसारके विभिन्न पदार्थ, धनसंपत्ति, सगेसम्बन्धी, बलविभव, यौवनलावण्य आदि सभी अनित्य और नश्वर हैं। केवल एक आत्मद्रव्य ही अनादि, नित्य और अमर है।
अशरण । धन औषधि, सैना शस्त्र, गृहदुर्ग, मित्र कुटुम्ब और मंत्रतंत्रादि कोई भी किसी प्राणीको मरनेसे बचानेके लिये समर्थ नहीं है। जन्ममरणके दुःखोंसे छूटनेके लिये आत्मज्ञान ही एक अमोघ उपाय है, क्योंकि आत्मा ही पंचपरमेष्ठि और रत्नत्रयका केन्द्रस्थल है।