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________________ r orn. v vinor. . . . . .m ४०] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य ।। e ser. भांति अपनाना एक तीव्र पाप है और मूलाचार जैसे अपूर्व ग्रन्थका सुयोग्यकर्ता इतना बड़ा अपराध कभी नहीं कर सकता था। यदि मूलाचारके कर्ताने ऐसा किया था तो कुन्दकुन्दचार्यकी कृतियोंसे ही गाथायें क्यों चुराई ? अन्य किसी आचार्यकी एक गाथा भी मूलाचारमें नहीं पाई जाती । यह भी कहा जा सकता है कि मूलचारमें श्री कुंदकुंदाचार्यने भी अपने दूसरे ग्रन्थोंसे स्वरचित गाथायें लेकर इस ग्रंथमें क्यों भरदी? इस ग्रन्थके प्रत्येक अधिकारीको स्वतंत्र रूपसे ही उन्हें रचना चाहिये था, परन्तु ऐसा कहना सन्देह मात्र ही है। जान पड़ता है कि आचार्य वरको प्रत्येक विषयकी भावपूर्ण स्वरचित अनेक गाथायें कटस्थ रहती थीं और प्रकरणवश उन्हें यथाबश्यक निस्संकोच कहीं२ लिख जाते थे। यदि कहीं कुछ भूल जाते थे, तो दूसरे शब्दोंमें या पादोंमें उसकी पूर्ति और यथोचित परिवर्तन भी कर देते थे। यही कारण है कि कहीं पूरी और कहीं अधूरी गाथायें इस ग्रंथमें दिखाई पड़ती हैं । उदाहरणरूर देखिये, नियमसारकी गाथा ९९ और १०० भावपाहुड़की गाथा ५७-५८ हैं और नियमसारकी यही गाथा १०० समयसारमें गाथा २७७ है। खोज करनेपर ऐसे और भी अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। इन सब प्रमाणों और युक्तियोंसे सिद्ध होता है कि मूलाचारके कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य ही हैं। ' उपर्युक्त समस्त अनुसंधानका तात्पर्य यह है कि कुरलके अतिरिक्त शेष सभी रचनायें हमारे चरित्रनायक श्री कुंदकुंदाचायकी हैं। .
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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