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________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। [२९. वर्णन सहसा विश्वसनीय नहीं है। मार्गवर्ती ऊंचे २ पर्वतों और गहरे २ समुद्रोंको पार करना पैदल तो क्या वायुयानके द्वारा भी असंभव और अप्राकृतिक है, परन्तु आचार्यवरकी विदेहक्षेत्र गमनकी कथा ऐसी निरी कपोलकल्पित भी नहीं जान पड़ती, जिसपर साधारण बुद्धिके मनुष्योंने ही अंध भक्तिसे योंही विश्वास कर लिया हो,और बालक बहलावनी कहानियोंकी भांति वैसे ही रंट क्खा हो । बल्कि आजसे हजार वर्ष पूर्व और उससे पीछेके विद्वान आचार्यों और सुविज्ञ शास्त्रकारोंने भी इसकी वास्तविकताको विना संकोच और आपत्तिके स्वीकार किया है। श्री देवसेनसूरि दिगम्बराचार्यने दर्शनसारमें, जिसे उन्होंने वि० सं० ९९० में रचा था. आचार्यवरकी सिद्धान्त सम्बन्धी अपूर्व मर्मज्ञताका यही कारण वर्णन किया है कि उन्होंने विदेहक्षेत्रमें विद्यमान तीर्थकर श्री सीमन्दरस्वामीके समोशरणमें जाकर उनका साक्षात् उपदेश सुननेका सौभाग्य प्राप्त किया था। तत्पश्चात् श्री जयसेनाचार्यने विक्रमकी १४ वीं शताब्दिमें पञ्चास्तिकायकी टीकाके आरम्भमें स्पष्ट लिखा है कि इस प्राइतके 'मूल कर्ता ( कुन्दकुन्दस्वामी ) पूर्व विदेह गये और वहां श्री सीमंदर ' 'भगवानसे तत्वज्ञान प्राप्त किया। उन शिलालेखोंमें, जो विक्रमकी १२ वीं शताब्दिसे- कई सौ वर्ष बादतक संहृत किये गये, आचार्यवरके विदेहगमनका उल्लेख तो नहीं है; परन्तु उनमें यह अवश्य वर्णित किया गया है कि इन ''आचार्यवरको चारणऋद्धि प्राप्त थी--- .. .. . . .
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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