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कृष्ण
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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य ।
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करते हुये "सद्धर्मवृद्धिरस्तु ” कहकर आशीर्वाद प्रदान किया । उपस्थित जनतामें इस रहस्यको कोई नहीं समझ सका कि जब किसीने साक्षात होकर भगवानको नमस्कार नहीं किया तो आशीर्वाद किसको दिया गया और क्यों ?
जनसाधारणकी इस शंकाके निवारणार्थ भगवान ने बताया कि भरतक्षेत्र में रहनेवाले दुर्द्धर तपस्वी कुन्दकुन्द नुनिने ध्यानस्थ होकर नमस्कार किया है उन्हींको यह आशीर्वाद दिया गया है। इस घटना से. उपस्थित जनसाधारण पर आचार्यवरके आदर्श तपोबल और ध्यान-मनताका आश्चर्यकारी प्रभाव पड़ा ।
उस बृहद सभामें इन आचार्यवरके पूर्वजन्म के दो चारण ऋषिघारी मित्र प्रेमवश भरत क्षेत्र आकर इन्हें विदेहक्षेत्र लिवा ले गये, और समोशरणमें लेजाकर भगवानके साक्षात् दर्शन करा दिये । जब आचार्यवरकी समस्त शंकाओंका पूर्णतः समाधान होगया तो इनकी -इच्छानुसार इनको उन्हीं दोनों मित्रोंने भरतक्षेत्र लाकर इनके नियत -स्थान पर पहुंचा दिया |
अनुमानतः तीर्थंकर भगवान् के साक्षात् दर्शन करने और उनका तत्वोपदेश श्रवण करनेसे ही आचार्यवरको ऐसी मानसिक शक्ति प्राप्त होगई थी कि इसके बाद जब गिरनार पर्वत पर श्वेताम्बर विद्वानाचार्योंसे शास्त्रार्थ हुआ तो अन्तमें स्थानीय ब्राह्मी देवीने स्वयं प्रकट होकर यह कह दिया कि दिगम्बरी मार्ग ही सच्चा और कल्याणकारी है ।
.. भरत क्षेत्र के किसी भूमिगोचरी मनुष्यकी विदेहक्षेत्रकी यात्राका