SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ____ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य । [२५ अपने गुरुसे अध्ययन करनेमें आचार्यवरको १०-११ वर्ष लग जाना साधारणसी बात है। तात्पर्य यह है कि वि० सं० २४८ तक ही हमारे चरित्रनायकने अपने गुरुसे शिक्षा प्राप्त की और तभी गुरुवर्यकी यह लोकयात्रा समाप्त होनेपर उनके रिक्त पदकी इन्होंने पूर्ति की। उस समय पट्टावलिके अनुसार इनकी आयु ४४ वर्ष थी। उसी पट्टावलिके आधारपर इनका आचार्यकाल ५२ वर्ष (५१ वर्ष १० मास १० दिन ) निर्विवाद माना जाता है। अतः हमारे चरित्रनायकका वि० सं० २४८+५२-३०० में दिवंगत होना निश्चय होता है । " विद्वज्जन बोधक " में इनके उत्तराधिकारी उमास्वामीके समयवर्णनका प्रसिद्ध श्लोक उद्धृत किया है---- वर्षे सप्तशते चैव, सप्तत्या च विस्मृतौ । उमास्वामिमुनिर्जातः, कुन्दकुन्दस्तथैव च ॥ अर्थात् वीर स्वामीके निर्वाणसे ७७० वर्ष पीछे उमास्वामी. मुनि हुये और कुन्दकुन्द स्वामीका भी यही समय है। यद्यपि यह निश्चय नहीं है कि इस श्लोकका कर्ता कौन है और किस आधारपर उसने यह कथन किया है, और न यही कि विद्वज्जन चोधकमें यह श्लोक कहांसे उद्धृत किया गया है तो भी इसका कथन निर्विवाद ही जान पड़ता है। ___ संभवतः प्रकरणकी अपेक्षासे " मुनिर्जातः " पदोंका अर्थ उमास्वामीके आचार्य पद प्राप्त करनेसे है न कि मुनिदीक्षा लेनेसे । वि. सं. ३०० ही ऐसा संधि वर्ष था जब उसके आरम्भमें कुन्दकुन्द आचार्य भी जीवित थे, और अन्तमें उनके दिवंगत होजाने पर
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy