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भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य।।
रचना कबसे प्रारम्भ हुई और इसमें कितना समय लगा।
चूंकि अंग ज्ञानियों और पूर्व पदांश वेदियोंका समय २१३ वि० सं० तक था। अतः श्रीधरसेनको उनकी स्वर्ग प्रामिक बाद ही श्रुतब्युच्छेदकी आशंका हो सकती थी, इस हेतुसे यह मान लेना पड़ता है कि महान शास्त्रोंकी रचना श्री माघनन्दिस्वामीके स्वग:रोहणके वाद अर्थात् वि० सं० २१७ के लगभग प्रारम्भ हुई।
कर्मसिद्धान्तके अध्ययन कराने, छः खण्डोंमें व्यवस्थित करने, फिर लिपिबद्ध होने आदिने और कयायप्राभृतको गाथासूत्रों में ग्रंथित करने, उसपर चूर्णिसूत्र और वृत्ति आदि रचनेमें कमसे कम २० वर्ष अवश्य लगे होंगे। इतना समय इस महान कार्यके सम्पादनके लिये अनुनान कर लेना कुछ अधिक नहीं है। अतः इस मान्यताके अनुसार इन महान् शालोंका प्रणयन लगभग वि० सं० २३७ तक समाप्त हुआ।
शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि हमारे चरित्रनायकने इन सिद्धान्त-शाबोंका गुरु परिपाटीसे बोध प्राप्त किया था। गुरु परिपाटीका अर्थ यही होसकता है कि जिस प्रकार कोई विद्यार्थी गुस्से शिक्षा प्राप्त करता है उसी पद्धतिसे इन आचार्यवरने भी अपने गुल्से इन शास्त्रोंका अध्ययन किया था, स्वयं स्वाध्याय द्वारा नहीं।
- इसका अर्थ यह हुआ कि इन आचार्यवरने जब इन नहान शालोमा बोध लाभ किया था तब इनके गुरु कुमारनंदि सिद्धांतदेव (सिद्धान्तशालके मर्मज्ञ) जीवित थे और हमारे नुनिश्री आचार्य पदपर आसन्न नहीं हुये थे। ।
- इन महान शास्त्रोंकी हस्तलिखित प्रतिलिपि प्राप्त करने और