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________________ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य · [ २३ A. 1 छः खंडोंमें लिपिबद्ध किया । इसी हेतुसे वह बृहद् सिद्धान्त शास्त्र पट्खण्डागम नामसे प्रसिद्ध है । गुणधर आचार्यने भी स्वयं कषायप्राभृतको गाथा सूत्रों में ग्रथित करके नागहस्ति आर्यमक्षु मुनियोंको अध्ययन करा दिया, जिनसे यतिवृषभने इन सूत्र गाथाओं को पढ़कर उन पर छः हजार श्लोक परिमाण चूर्णि सूत्र रचे और उच्चारणाचार्य अपर नाम उदधरणाचार्य ने १२ हजार श्लोक परिमाण वृत्तिसूत्र लिखे । इस प्रकार स्वनामधन्य गुणधर, यतिवृषभ, उच्चारण इन तीन आचार्यों द्वारा कषायप्राभृत उपसंहृत हुआ । यह स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता कि वि० सं० २१३ के कितने समय बाद तक आरतीय मुनियोंका अस्तित्व रहा, परन्तु इस हेतुसे कि वे भी पूर्वपदांशवेदी थे, उनका समय भी अंग ज्ञानियोंके समयके अंतर्गत ही मान लेनेमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी । अतः आरातीय मुनियोंका अस्तित्व भी वि० सं० २१३ तक ही रहा । इसके बाद होनेवाले अर्हलि और माघनन्दिका आचार्य काल भी कहीं नहीं दिया है। हां, नन्दिसंघकी पट्टावलिसे माघनन्दिके विपयमें यह अवश्य जान पड़ता है कि वे नन्दिसंघके ४ वर्षतक प्रथम अनुशासक रहे । 1 इस ४ वर्षकी गणना संभवतः वीरात् सम्वत ६८३ तथा वि० सं० २१३ के बाद कीगई है। जिसका स्पष्ट अर्थ यह होता है कि माघनन्दि आचार्य वि० सं० २१७ में दिवंगत हुये । यह बात भी कहीं व्यक्त नहीं कीगई है कि महाशास्त्रोंकी
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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