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________________ २६] भगवान् कुन्दकुन्दाचार्य। उमास्वामी साधारण मुनि अवस्थासे आचार्यरदपर अभिषिक्त हुये।। देवसेनसूरिस्त दर्शनसारके अनुसार श्वेताम्बर संघकी उत्पत्ति वि० सं० १३६ में हुई थी और इन आचार्यवरका जन्म वि. सं.. (३०० स्वर्गवास-१६ वर्ष आयु,)२०४ में हुआ, जबकि अंगज्ञानियों और पूर्व पदांश वेदियोका समय समाप्त होरहा था। श्वेताम्बर कथानकोंमें दिगम्बरान्नायकी उत्पत्ति वि० सं० १३९ में बताई जाती है. जिससे जान पड़ता है कि विक्रम सम्बत १३६ या १३९ तक मुनिसंघमें कुछ आचार सम्बन्धी शिथिलता ही चल रही थी जिसका आरम्भ भद्रबाहु श्रुतकेवलीके समय १२ वर्षीय दुष्कालसे होगया था, परन्तु प्रथक रूपसे किसी और संघकी स्थापना नहीं हुई थी। न निग्रंथ मुनियों में सिद्धान्त विषयक कोई विशेष भेद उपस्थित हुआ था। अनुमानतः शिथिलाचारी मुनियोंन अपनी लोकाविज्ञाको मिटानेके लिये अपने जनसमुदायको वि० सं० १३६ या १३९ में एक पृथक् संघके रूपमें संगठित किया और तत्पश्चात् उन्होंने उपस्थित जिनेन्द्र प्रणीत सिद्धान्तको स्वानुकूल परिवर्तित करके स्वतंत्ररूपसे शास्त्रोंकी रचनाका प्रबंध किया। श्री कुन्दकुंदस्वामीने स्वरचित सूत्रपाहुड़में सग्रंथ मुनियों और स्त्रियोंके मुक्तिलाभ करनेके सिद्धांतका घोर विरोध किया है, जिससे जान पड़ता है कि श्वेताम्बराम्नायके सिद्धात शास्त्रोंकी रचना भी उस. समय तक होचुकी थी और इस नवजात संप्रदायमें ऐसे सिद्धान्तवेदी आचार्य भी उत्पन्न होने लगे थे. जो कुन्दकुन्द जैसे प्रकाण्ड' सिद्धांत ज्ञाता और प्रखर विद्वानाचार्यसे शास्त्रार्थकी टक्कर लेनेको
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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