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तृतीय अध्याय
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के उच्चकोटि के ग्रन्थों का भी अवलोकन किया था। इसके अतिरिक्त आप समय की गति के प्रति भी जागरूक थे। यहां यह म्मरण रखना आवश्यक है कि आपका आविर्भाव उस समय हुया था जब हिन्दी का रीतिकालीन काव्य अपनी युवावस्था पर था। अतएव आपके काव्य पर तत्कालीन कवियों के प्राचार्यत्व तथा चमत्कारप्रदर्शन की भावना का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। आपने जहां एक ओर स्वामी कातिकेय के द्वादगान्प्रेक्षा के मनान बारह भावना ( ब्रह्म०, पृ० १५३५४) पर कलम उठाई है. अनोरखमरी के समान बहिनीपिका और अन्तापिका (ब्रह्म०, पृ० १८८-१९३) लिखा है, मलिक मोहम्मद जायसी के 'अखरावट' के समान 'अक्षर बनी निकः' (पृ०८४-८) की रचना की है, मुरादाम के समान 'दृष्टकट' और 'चित्रबद्ध काव्य" को सजेना की है, वहीं दूसरी और रीतिकालीन आचार्यों के समान भापा को सजाने की चेष्टा की है, ब्रजभापा के अतिरिक्त खड़ी बोली और अरबी-फारसी के शब्दों के उचित प्रयोग और उन पर प्राधिकार को सिद्ध कर दिवाया है. विविध वाणिक और मात्रिक छन्दों को सफलतापूर्वक काव्य में स्थान दिया है और इलेप, यनक, अतृप्रामादि अलंकारों का चमत्कार
१. अपने चित्रबद्ध कविता के अन्तर्गत रहनु दमन ग.: चित्रन् , त्रिपदीबद्ध
चित्रम् एकाक्षरत्रिपदं वचक्रम, कपाटबद्धचक्रन्, अश्वगतिबद्ध चित्रन् , सर्वतोभद्रगति चित्रम्, पर्वतबद्ध चित्रम्, वनराकारबद्ध चित्रम् श्रादि की
रचना की है। दे० (१०६ से ३०४ तक) २. एक छन्द में अन्बी-पारर्स के शब्दों का प्रयोग देखिए :मान यार संग कहा उन का चशम बोल,
साहिब नजदीक है तिसकी पहचानिये। नाहक किरहु नाहि गाफिल जह न बीच,
कन गोश जिनका भलीभाँति जानिये ।। पायक क्यों बनता है, अपनी पयन मह,
तं मरीज चिदानन्द इगही में मानिये पंज से गनीम तरी उमर साथ लगे हैं,
___ खिलाफ तिमें जानि तूं आप सच्चा श्रानिये 1.५६ । (पृ० २१) ३. यमक और इत्तेत्र के चमत्कार संवर्ध: एक एक छन्द उद्धृत कर देना पर्यान होगा:
मनकाम जीत्यो बली, मैनकाम रसलीन । मनकाम अपनी कियो, मैनकाम प्राधीन ।।८। (पृ० २८०) बालापन गोकुल बने, यौवन मनमथ राज ।
वृन्दावन पर रम रचे, द्वारे कुवजा काज ।४६।। (१०२८६) (दुसरे दोहे में कवि ने :-नापिका वर्णन के अतिरिक्त गोकुल, मनमथ, वृन्दावन और कुबजा के इशाग क्रमशः इन्द्रियों का कुन, कामदेव, कुटुम्ब, और श्राव (द्वार ) अर्थ करके मानव जीवन की नश्वरता का संकेत भी किया है।)