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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद दिखाया है। यह सब होते हुए भी आपने गोस्वामी तुलसीदास के समान 'कवि लघुता' भी दिखाई है। वस्तुतः आप में भक्तिकालीन संतों और रीतिकालीन आचार्यों के गुणों का अद्भुत सामंजस्य है। हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवियों में आपका विशिष्ट स्थान है। आशा है हिन्दी साहित्य के भावी इतिहासकार भैया भगवतीदास को उनके गौरवपूर्ण स्थान से वंचित न करेंगे।
(१६) पांड हेमराज
पांडे हेमराज हिन्दी गद्य लेखक और टीकाकार के रूप में काफी प्रसिद्ध हैं। आपने प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के कई जैन आध्यात्मिक ग्रन्थों का हिन्दी गद्य-पद्य में अनुवाद अथवा टीका लिखा है। 'मिश्रवन्धु विनोद' में आपके सम्बन्ध में यह विवरण दिया हुआ है :
नाम (३७८।१) हेमराज पांडे । ग्रन्थ - (१) प्रवचनसार टीका (२) पंचास्तिकाय टीका (३) इभक्तामर
भाषा (४) गोम्मटसार (५) नयचक्र वचनिका (६) सितपट
(७) चौरासी वोल। रचनाकाल-१७०९। विवरण-रूपचन्द के शिष्य तथा गद्य हिन्दी के अच्छे लेखक थे।
पंचास्तिकाय टीका के अन्त में आपको रूपचन्द का शिष्य बताया गया है-'यह श्री रूपचन्द गुरु के प्रसाद पांडे श्री हेमराज ने अपनी बुद्धि माफिक लिखत कीना।'२ सम्भवतः यह रूपचन्द, बनारसीदास के साथी रूपचन्द होंगे, गुरु पांडे रूपचन्द नहीं, क्योंकि पांडे रूपचन्द की मृत्यु सं० १६९४ में ही हो चुकी थी।
आपने कितने ग्रन्थों की रचना की, इसका अभी तक निश्चित रूप से पता नहीं चल सका है। मिश्रबन्धुओं ने आपके सात ग्रन्थों की सूची दी है । जैन हितैषी (अंक ७/८) में दिगम्बर जैन ग्रन्थ कर्ताओं की सूची में पांडे हेमराज कृत उक्त सात पुस्तकों के अतिरिक्त स्वेताम्बर मत खण्डन' नामक आठवीं रचना का उल्लेख है। राजस्थान के जैन शास्त्र भांडारों की खोज से हिन्दी साहित्य की वहुत-सी अनुपलब्ध और अज्ञात सामग्री प्रकाश में आई है। श्री दिगम्बर जैन अतिशय
१. मिश्रबन्धु विनोद (भाग २) पृ० ४५७ । २. श्री नाथूराम प्रेमी-हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ०५१ से उधृत | ३. हेमराज नयचक्र की वचनिका (सं०१७२४) गोमठसार की सक्षिप्त
वचनिका, प्रवचनमार वचनिका (सं० १७०६ ) पंचास्तिकाय वचनिका, भक्तामर स्तोत्र छन्दो०, प्रवचनसार छन्दो, चौरासी अछेड़ा छ०, स्वेताम्बर मतम्बण्डन (जेनहितैषी, अंक ७८, वेशाग्व-ज्येष्ठ, वीर नि० मं० २४३६, पृ०५५)।