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तृतीय अध्याय
(११) रूपचन्द
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रूपचन्द और पाण्डे रूपचन्द :
बनारसीदास के समकालीन कवियों में रूपचन्द का विशिष्ट स्थान है। किन्तु उनके व्यक्तित्व और परिचय के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। रूपचन्द और पाण्डे रूपचन्द के सम्बन्ध में विद्वानों कुछ भ्रम भी रहा है । प्रायः दोनों को एक ही व्यक्ति मान लिया गया है ।' इसका प्रमुख कारण दोनों का समकालीन होना तथा दोनों का बनारसीदास से सम्बद्ध होना ही कहा जा सकता है।
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लेकिन पांडे रूपचन्द और रुपचन्द भिन्न पुरुष थे पांडे रूपचन्द विक्रम की १७वीं शताब्दी के अच्छे कवि थे । उन्हें संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था । आपने 'समवसरण' नामक पूजा-पाठ की एक पुस्तक की प्रशस्ति में अपना परिचय दिया है। उसके अनुसार आपका जन्मस्थान कुह' नाम के देश में स्थित 'सलेमपुर' था । आप अग्रवाल वंश के भूषण गर्ग गोत्री थे। आपके पितामह का नाम 'भामह' और पिता का नाम 'भगवानदास' था भगवानदान की दो पत्नियां थीं जिनमें प्रथम से ब्रह्मदास नामक पुत्र का जन्म हुआ था और दूसरी पत्नी से पाँच सन्तानें हुई थीं हरिराज, भूपति, अभयराज कीर्तिचन्द्र और रूपचन्द | रूपचन्द ही को प्रसिद्धि प्राप्त हो सकी । ये जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ विद्वान् थे । उन्होंने शिक्षार्जन हेतु बनारस की भी यात्रा की थी।
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भट्टारकीय पंडित होने के कारण आपको 'पाण्डे' की उपाधि से विभूषित किया गया था। यही पाण्डे रूपचन्द बनारसीदास के गुरु थे। 'अर्थकथानक ' में बनारसीदास ने लिखा है :
'आठ बरस को हुआ बाल। विद्या पढ़न गयौ चटसाल ॥ गुरु पांडे सौं विद्या सिखै । अक्खर बांचे लेखा लिखै ॥ ८६ ॥ (अर्धकथानक पृ० १० )
व्यापार करना बनारसीदास का पैतृक व्यवसाय था । इसी सम्बन्ध में उनको आगरा की भी यात्रा करनी पड़ी थी । व्यापार धन्धे में अनुभव न होने के कारण बनारसीदास को हानि उठानी पड़ी थी । यहाँ तक कि वे मूलधन भी गँवा बैठे
१. देखिए, कामता प्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास, पृ० १००। राजकुमार जैन अभ्यामावली, प्र० ९४ और हिन्दी साहित्य ( द्वि० [सं० ) सं० डा० धीरेन्द्र वर्मा में श्री अगरचन्द नाहटा का का लेख, जैन साहिल, पृ० ४८२ ।
२. देखिए अनेकान्त वर्ष १०, किरण २, ( अगस्त १६४८) पं० परमानन्द शास्त्री का लेख 'पाडे' रूपचन्द और उनका साहित्य, पृ० ७७ |