SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय लेकिन उस समय पावस ऋतु का समय न होने से धारिणी का दोहद पूर्ण न हो सका। तब धारिणी म्लानचित्त वाली, म्लानवदना, भूख सहने से क्लान्त शरीर वाली सभी मनोरजनादि का परित्याग करके भूमि की तरफ दृष्टि गडाकर अश्रुपात करने लगी। दासियो ने इस प्रकार महारानी को देखा तब उन्होंने पूछा-रानी साहिबा, क्या बात है? रानी साहिबा क्या अपराध हुआ? लेकिन महारानी तो मौनपूर्वक अश्रुमुचन करती रही। तब दासियाँ राजा श्रेणिक के पास पहुंची और निवेदन किया-महाराज | महारानी धारिणी महलो मे आर्तध्यान कर रही हैं। हमने उनसे बार-बार पूछा, लेकिन वे रुदन का कारण हमे बता नहीं रही हैं। यह श्रवण कर स्वय श्रेणिक महारानी धारिणी के समीप आये और रुदन करती धारिणी को देखकर पूछा-देवी ! क्या अपराध हुआ है? देवी ! तुम रुदन क्यो कर रही हो? (फिर भी रानी मौन रहती है।) देवी ! क्या मै तुम्हारे हृदय का दु ख श्रवण करने योग्य नहीं हूँ जो तुम अपने हृदय की वार्ता मुझसे छिपा रही हो। ___ धारिणी-स्वामिन् ! ऐसी बात नहीं। मुझे दोहद उत्पन्न हुआ है कि मेघ-घटाएँ घिरने पर मैं वैभारगिरि की तलहटी मे जाकर वर्षा ऋतु का आनन्द लूँ, लेकिन अभी मेरा दोहद पूर्ण नहीं होने से मैं जीर्ण-शीर्ण शरीर वाली हो गई हूँ। श्रेणिक-महारानी आश्वस्त रहो। मै तुम्हारा दोहद पूर्ण करने का प्रयास करता हूँ। रानी (ऑखो से देखकर इशारे में) स्वीकृति प्रदान करती है। महाराज वहाँ से चलकर उपस्थान शाला (सभा स्थल) मे सिहासन पर आरूढ होते हैं और दोहदपूर्ति का उपाय चितन करते हैं, परन्तु कोई उपाय उन्हें नजर नहीं आता। वे चिन्ताग्रस्त हो जाते हैं। तभी अभयकुमार पिताश्री के चरण वदन के लिए उपस्थित होते हैं। पिता को चिन्ताग्रस्त देख, अभयकुमार पूछत हे-पिताश्री, लगता है आप चिताग्रस्त हैं? आपकी चिता का क्या कारण है? पिता-अभय । तुम्हारी मॉ धारणी को मेघ-घटाएँ आच्छादित होने पर वैमारगिरि की तलहटी में घूमने का दोहद पेदा हुआ है। वह पूर्ण करने का उपाय नहीं दिख रहा है। अभयकुमार-पिताश्री ! यह कार्य आपके अनुग्रह से मै सम्पन्न कर दूंगा। अभयकुमार के वचनों को श्रवण कर श्रेणिक आश्वस्त हो गया। इधर अभयकुमार ने चितन किया कि साधर्म कल्प ने रहने वाला देव मेरे पूर्वभव का मित्र है। अष्टमभक्त
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy