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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 81 करके उसकी आराधना करता हॅू, तो वह मेरा इच्छित पूर्ण कर देगा। ऐसा चितन कर अभयकुमार पौषधशाला मे गया और वहाँ अष्टम भक्त (तेला) पचक्ख कर पौषध" करके देव की आराधना करने लगा । तब उस सौधर्म कल्पवासी देव का आसन चलित हुआ । उसने अवधिज्ञान लगाकर देखा कि मेरा मित्र तेले तप की आराधना करके मुझे याद कर रहा है, अत मुझे उसके पास जाना चाहिए । वह देव उत्तम वस्त्र धारण कर अभयकुमार के पास आता है और अभयकुमार से कहता है - देवानुप्रिय । मैं अत्यन्त अनुराग से तुम्हारी प्रीति से आकर्षित होकर आया हूँ। अब बतलाओ कि मैं तुम्हारी कौनसी मनोकामना पूर्ण करूँ । तब अभयकुमार ने पौषध को पारा और पार कर कहा- देवानुप्रिय ! मेरी छोटी माता धारिणी को अकाल मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ है, उसको पूर्ण करो । देव-तुम निश्चित रहो, मैं उस दोहद को पूर्ण किये देता हूँ। उसी समय वह देव वैभारगिरि पर गया । उसने वैक्रिय समुद्घात किया और वहाँ जैसा दोहद धारिणी ने देखा वैसे पचवर्णी बादल और विद्युतयुक्त वर्षा का दृश्य उपस्थित कर दिया और पौषधशाला मे आकर अभयकुमार से निवेदन किया कि मैंने वैभारगिरि पर वर्षा ऋतु का दृश्य उपस्थित कर दिया । तुम अपनी माँ धारिणी का दोहद पूर्ण करो । अभयकुमार ने पौषधशाला से निकलकर राजभवन मे प्रवेश किया और राजा श्रेणिक से कहा- मेरे मित्र देव ने वैभारगिरि पर वर्षा ऋतु का दृश्य उपस्थित कर दिया है, अत आप मेरी लघु माता का दोहद पूर्ण करे । श्रेणिक राजा अत्यन्त हर्षित होता हुआ चतुरगिणी सेना सजाता है और सेचनक हस्ति पर सवार होकर अपने पीछे धारिणी को बिठलाता है, उत्तम चॅवर बिजाती हुई, कोरट के सुमनो का छत्र धारण किये, अनेक नागरिकों द्वारा अभिनन्दन की जाती हुई वह वैभारगिरि की तलहटी मे पहुँची। वहाँ आराम, उद्यान, लता मण्डप' आदि मे खडी होती हुई, जलाशयो मे स्नान करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती है। तत्पश्चात् पुन राजभवन मे लौट आती है और विपुल भोग भोगती हुई विचरण करती है । (क) अष्टमभक्त - तेला (ख) पोषधशाला - पोषध क्रिया करने का स्थान (ग) पौषध - श्रावक का ग्यारहवाँ वृत्त (एक दिन-रात के लिए सावद्य क्रियाओ का त्याग करना) (घ) चतुरंगिणी - हाथी-घोड़े, रथ और पैदल (ङ) आराम-स्त्री, पुरुषो के विश्राम करने का मण्डप (च) उद्यान- फूल, फल वाले झाड़ो से व्याप्त बगिचा (छ) लता मण्डप -लता का बना हुआ घर
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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