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________________ 74 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय कूणिक का अवतरण : मगध सम्राट् श्रेणिक इन्द्राणी के साथ इन्द्र की तरह चेलना के साथ भोगो का भोग करने लगा। चेलना की सुदीर्घ भौंहे, उन्नत नासिका, कोमल कपोल. अरुणाभ अधर, श्वेत दतपक्ति, कमनीय कटाक्ष और मधुरवाणी राजा श्रेणिक को वरबस आकृष्ट कर लेती थी। उसका निर्मल मन सदैव अपने भर्ता के चरणो मे समादृष्ट रहता था। इस बेजोड समर्पण से श्रेणिक का मन चेलना पर अत्यधिक था। अब उदार भोगो को भोगते हुए निरन्तर रात्रि-दिवस व्यतीत हो रहे थे। इधर वह औष्ट्रिक तप करने वाला सेनक तापस मरकर जो व्यन्तर देव बना था, वह अपनी देवायु को पूर्ण कर चेलना की कुक्षि मे पुत्र रूप मे अवतरित हुआ। ___ उस रात्रि मे अपने शयन कक्ष मे शयन करते हुए महारानी चेलना ने अर्धरात्रि के समय सिह को आकाश मण्डल से उतरकर मुँह मे प्रवेश करते हुए देखा। तब वह जागृत बनकर मन्द-मन्द गति से राजा श्रेणिक के पास जाती है। श्रेणिक को मधुर-मधुर शब्दो से सम्बोधित कर जागृत करती है एव स्वप्नफल पूछती है। _राजा श्रेणिक चेलना से कहते है-प्रिये । तुमने कल्याणकारी स्वप्न देखा है। तुम 9 मास 77 रात्रि पूर्ण होने पर एक शूरवीर बालक का प्रसव करोगी। राजा श्रेणिक से स्वप्नफल श्रवण कर महारानी हर्षित होती है एव सुखपूर्वक गर्भ का निर्वहन करती है। गर्भ को तीन मास व्यतीत होने पर चेलना महारानी को गर्भस्थ शिशु के श्रेणिक के साथ वैरानबध के प्रभाव से ऐसा दोहद पैदा हुआ कि वे माताऍ धन्य हैं, पुण्यशाली हैं, उनका जन्म जीवन सफल है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मास का तथा सुरा यावत मेरक, मद्य, सीधु और प्रसन्ना नामक मदिराओ का आस्वादन करत हुए. विस्वादन करते हए, अपनी सहेलियों को वितरित करते हए अपने मन का अभिलाषा को तृप्त करती है। इस अनिष्ट, अयोग्य दोहद के पूर्ण न होने से चेलना का शरीर निस्तेज वन गया और वह भग्न मनोरथ वाली होकर आर्तध्यान करने लगी। दासियों ने चेलना को आर्तध्यान करते हुए देखा तो तुरन्त राजा श्रेणिक से जाकर कहा-राजन्! चेलना महारानी आर्तध्यान कर रही हैं। राजा श्रेणिक तुरन्त महारानी के समीप आया और पूछा-देवानुप्रिये । तुम आर्तध्यान क्यो कर रही हो? (क) समादृष्ट-मलग्न (ख) विम्वादन-विशप रूप मे आस्वादन ramme
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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