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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 73 बनाया वह तो कन्या अन्त पुर मे ही रह गयी और मैं जिस भगिनी के बिना एक पल भी नहीं रह सकती, आज उसे छोड़कर यहाँ आ गयी। अब क्या होगा मैं इस पुरुष को क्या बोलूँगी। उसका तो हृदय तीव्रगति से धक् धक् करने लगा। यह राजा तो मेरी बहन का प्रेमी है मुझे यह नहीं अपनायेगा तो हाय मेरा क्या होगा? यह सोच चेलना के मुख मण्डल पर हवाइयाँ उडने : लगती है । राजा श्रेणिक को अभी तक पता नही था कि यह चेलना है। उसने 1 चेलना को सुज्येष्ठा ही मान रखा था। जैसे ही उसने चेलना की तरफ देखा, उसका म्लान मुखमण्डल देखकर बोला- सुज्येष्ठा ! सुज्येष्ठा ! क्या बात है ? चेलना- राजन् ! मैं सुज्येष्ठा नहीं हूँ। राजा - सुज्येष्ठा नहीं हो? चलना-हॉ राजन् । सुज्येष्ठा तो रत्न का डिब्बा लेने गयी थी, उसने मुझे कहा कि तू चल, मै आती हूँ तो मै तो यहाँ चली आई लेकिन उसके आने से पहले आपने रथ फेर लिया। वह वहाँ रह गयी और मैं 1 ! श्रेणिक-धैर्य रखो देवी । होनहार बलवान है। तुम रूप और सौन्दर्य का अप्रतिम खजाना हो। तुम सुज्येष्ठा से भी अधिक लावण्यवाली हो। मैं तुम्हारा वरण कर कृतार्थ हो जाऊँगा । श्रेणिक के वचन श्रवण कर, चेलना को कुछ सतोष मिला, लेकिन बहिन के विरह का दुख हृदय को सालने लगा किन्तु अब कोई उपाय नहीं था । इधर राजा श्रेणिक चेलना को लेकर राजगृह में प्रविष्ट हुआ। राजमहलो मे पहुँचा, जहाँ अभयकुमार आया । श्रेणिक और चेलना का गान्धर्व विधि से विवाह सम्पन्न हुआ । 1 सारी वैवाहिक रस्म पूर्ण होने पर राजा स्वय अभयकुमार सहित नाग रथिक एव सुलसा के पास पहुँचा और उन्हे बतलाया कि बत्तीस पुत्र एक साथ मृत्यु को प्राप्त हो गये हैं । 130 जैसे ही माता-पिता ने श्रवण किया, वे करुण क्रन्दन करने लगे। अरे काल । तू बडा भीषण है। तूने यह क्या किया? बत्तीसो को एक साथ ग्रास बना लिया। पक्षियो के बहुत बच्चे होते हैं, वे भी एक साथ नहीं मरते। यह क्या हुआ? हाय । मृत्यु ने हमको ठग लिया। ऐसा कहकर जोर-जोर से विलाप करने लगे। तब राजा श्रेणिक ओर अभयकुमार उनकी आत्मशाति के लिए तत्त्ववेत्ता आचार्य के पास ले गये। आचार्यश्री ने उनको जन्म मरण की प्रक्रिया समझाई। मृत्यु को शाश्वत बतलाया, जिससे उन्हें आत्मशांति मिली । तव राजा उन्हे आश्वस्त करके अभयकुमार सहित राजभवन लौटे। "
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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