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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 75
तब महारानी मौन रहती है । राजा कहता है- क्या मैं तुम्हारी बात सुनने के अयोग्य हॅू जो तुम मुझसे अपनी बात छिपा रही हो? इस प्रकार दो-तीन बार कहने पर चेलना ने अपना दोहद श्रेणिक को बतलाया, जिसे श्रवण कर राजा श्रेणिक ने बहुत मधुर वचनो से महारानी को आश्वासन दिया। तत्पश्चात् महारानी के पास से निकलकर बाह्य उपस्थानशाला मे सिहासन पर बैठकर दोहद पूर्ति का विचार करने लगा लेकिन उसे कोई उपाय ध्यान में नहीं आया तो वह चिन्ताग्रस्त बन गया ।
इधर अभयकुमार स्नानादि करके जहाँ सभा भवन था वहाँ आया और देखा कि सम्राट् अत्यन्त निरुत्साहित होकर बैठा है। तब उन्होने राजा से कहा-तात 1 आप आज चिन्ताग्रस्त लग रहे हैं, इसका क्या कारण है? राजा श्रेणिक ने चेलना का दोहद अभयकुमार को बतलाया ।
अभयकुमार बोला- तात ! चिन्ता छोडिये । मै दोहद पूर्ण करने का उपाय करता हॅू। तत्पश्चात् अभयकुमार, जहाँ अपना भवन था, वहाँ आया और उसने आन्तरिक विश्वस्त पुरुषो को बुलाया और कहा- तुम वधशाला से गीला मास, रुधिर और पेट का भीतरी भाग लाओ। वे विश्वस्त पुरुष अभयकुमार के कहने से मासादि लेकर आये। तब अभयकुमार थोडा-सा मास लेकर, जहाँ राजा श्रेणिक था वहाँ आया और राजा श्रेणिक को एक शय्या पर ऊपर की ओर मुख करके लिटाया। उसके उदर पर गीला रक्त, मास बिछाया और आँतें आदि लपेट दीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रक्त धारा बह रही हो । तब ऊपर मे माले से चलना को देखने के लिए बिठाया। उसे स्पष्ट दिखाई दे रहा था, जहाँ राजा श्रेणिक सोया था ।
तब अभयकुमार ने कतरनी से मास खण्ड काटे, बरतन मे रखे, श्रेणिक ने झूठ-मूठ मूर्च्छित होने का बहाना कर लिया। कुछ समय पश्चात् होश भी आ गया। इधर अभयकुमार ने चेलनादेवी को राजा श्रेणिक के उदरावली मास के वे लोथडे दिये जो वधिकशाला से लाये गये थे, जिन्हे खाकर चेलना ने अपना दोहद पूर्ण किया और गर्भ का सुखपूर्वक वहन करने लगी ।
कुछ समय व्यतीत होने पर एक दिन मध्य रात्रि मे चेलना महारानी ने सोचा कि इस बालक ने पिता का मास गर्भ मे रहते हुए ही खा लिया तो इसे गिरा देना चाहिए, नष्ट करना चाहिए। इस हेतु उसने विविध उपाय और अनेक
(क) उपस्थानशाला-सभा स्थान