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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 259 से वर्धापित किया और मधुर गिरा से आशीर्वचन कहते हुए यो कहा - आप परम दीर्घायु बने और सदैव अपने इष्ट परिकर से परिवृत होकर सिधुसौवीर सोलह जनपदो का, तीन सौ तिरेसठ नगर एव आकरो का, मुकुटबद्ध महासेन प्रमुख दस राजाओ का एव अन्य बहुत-से राजा, श्रेष्ठी, कोतवाल आदि पर आधिपत्य करते हुए राज्यधुरा का परिवहन करो । राज्याभिषेक की रस्म सम्पूर्ण होने पर राजा उदायन ने नवाभिषिक्त नृपति केशीकुमार से दीक्षा ग्रहण करने की अनुज्ञा प्राप्त की । केशी नृप ने उदायन राजा को दीक्षा ग्रहण की अनुमति देने के पश्चात् सम्पूर्ण नगर को स्वच्छ करवाया और उदायन राजा के अभिनिष्क्रमण की तैयारी प्रारम्भ की। उदायन को सुवर्णमय कलशो के गधोदक से स्नानादि करवाकर उनको वस्त्रालकार से परिमण्डित किया और उनकी अभिलाषानुसार नापित को बुलाया जो कि उनके अग्र केशो का कर्तन करने लगा । सम्पूर्ण वर्णन जमालि की तरह जानना चाहिए । अपने दुसह प्रिय-वियोग के दुख से व्यथित बनी महारानी पद्मावती ने राजा उदायन के अग्रकेशो को ग्रहण किया । तदनन्तर दूसरी बार उत्तर दिशाभिमुख सिहासन रखवाकर उदायन का स्वर्ण आदि कलशो से स्नान करवाकर अभिषेक किया और वह शिविका पर समारूढ होकर भगवान् के पास पहुँचा । प्रभु को वन्दन-नमस्कार करके वह ईशानकोण मे अलकार - आभूषण परित्याग करने हेतु गया। उसके आभूषणादि को पद्मावती देवी ने ग्रहण करके उदायन से कहा-“स्वामिन् ! आप सयम मार्ग मे अप्रमत्त भाव से पुरुषार्थशील रहे । यो कहकर राजा केशी और उनकी मामी, महारानी पद्मावती भगवान् महावीर को वन्दन- नमस्कार करके लौट गये । अभीचि का गमन : उदायन के सयम ग्रहण करने के पश्चात् भगवान् वीतिभय से विहार करके विदेह-स्थित वाणिज्य ग्राम नगर पधारे और वहा वर्षावास किया। उदायन राजर्षि सयम का आनन्द से अनुपालन कर रहे है" और अभीचिकुमार राज्य नहीं मिलने के कारणो से अनभिज्ञ होने से क्षुब्ध बना हुआ है । एक दिन यामिनी के अन्तिम याम" मे कुटुम्ब जागरणा करते हुए उसके मन मे इस प्रकार के अध्यवसाय उत्पन्न हुए कि मै उदायन का औरस पुत्र एव महारानी प्रभावती का आत्मज हूँ। मैं अपने पिता के रहते हुए भी उनके समस्त राजकीय कार्यो मे उनका (क) नापित-नाई (ग) अन्तिम याम - अन्तिम प्रहर (ख) अग्र - बढे हुए बाल चार-चार अगुल छोड़कर (घ) औरस - उदर से जन्मा
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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