________________
258 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय ___ भगवान्-देवानुप्रिय | तुम्हे जैसा सुख हो वैसा करो, किन्तु धर्मकार्य अविलम्ब करो।
भगवान् के ऐसा फरमाने पर उदायन राजा हस्ती स्कन्ध पर आरूढ होकर राजमहल की ओर लौटने लगा। राजा उदायन स्वय महल की ओर लौट रहा है और मन अनेक प्रकार की कल्पनाओ के जाल गूथ रहा है।
वह अध्यात्म-विचारो से अनुप्राणित होकर चितन करता है कि अभीचिकुमार मेरा अत्यन्त प्यारा पुत्र है। उसका नाम श्रवण करना भी दुर्लभ है और उसका दर्शन दर्शन, वह तो सुदुर्लभ है। यदि मै अपने वात्सल्य की धरोहर अभीचिकुमार को राज्य-सिहासन दे दूँ तब उसका अमूल्य जीवन क्षणिक, निसार काम-वासनाओ मे, प्रपचो मे, राजकीय व्यवस्थाओ मे ही समाप्तप्राय हो जायेगा। इन सासारिक कार्यो को सम्पन्न करते हुए वह राग-द्वेष से ग्रसित होकर भीषणतम कर्मो का अनुबध कर लेगा। इतने स्वल्प क्षणिक सुख के पीछे भीषण दुख-परम्परा को वृद्धिगत कर लेगा। फलत वह चतुर्गति रूप ससार मे परिभ्रमण करता रहेगा। उसकी आत्मा शाश्वत शाति का अतिशीघ्र वरण नहीं कर पायेगी। तब मैं अपने पुत्र को राज्यलिप्सा के लालच मे डालकर क्यो उसका मार्ग अवरुद्ध करूँ? यदि मैं उसे राज्य नहीं दूंगा तो वह राज्य से विरक्त बनकर एक-न-एक दिन अवश्यमेव भगवान् के सान्निध्य को प्राप्त कर ससार-कातार को पार कर जायेगा।
___ मैं अभीचिकुमार का राज्याभिषेक नहीं करूँगा लेकिन उसके स्थान पर किसका अभिषेक करूँ किसका अभिषेक करूँ हॉ, हॉ मेरे भानजे केशीकुमार को अभिषिक्त किये देता हूँ। इन्हीं विचारो को दृढीभूत करते हुए उन्होने केशीकुमार के राज्याभिषेक का निश्चय किया और इसी अन्तर्मन्थन को करते हुए वे राजमहलो मे लौट गये। हाथी से उतरकर राजसभा मे पूर्वाभिमुख होकर राज्य सिहासन पर बैठ गये।
सिहासनस्थ होकर नृपति ने आदेश देकर नगर को साफ-सुथरा करवाया। नगर के साफ-सुथरा होने पर उसने राज्याभिषेक की तैयारी करवाई और तैयारी करवा कर केशीकुमार को पूर्वाभिमुख श्रेष्ठ सिहासन पर बिठलाया । वहाँ उसको सुवर्ण आदि कलशो से स्नान करवा कर समस्त राज्यचिहो के साथ बाजो के महानिनाद के सहित राज्याभिषेक किया। तदनन्तर अत्यन्त गध-काषायिक वस्त्र से उसके शरीर को पौंछा, गोशीर्ष मलराज का अनुलिम्पन किया एव कल्पवृक्ष के समान वस्त्र एव अलकारो से शरीर को विभूषित किया।
तत्पश्चात् हाथ जोडकर अनेक लोगो ने केशीकुमार को जय-विजय शब्दो (क) महानिनाद-महाध्वनि
-