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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 257 करते हो, तुम किसी सामान्य पुरुष द्वारा हताहत नहीं किये गये हो, तुम्हे मारने वाले नरसिह है, अत तुम शोक मत करो ।
तुम्हारे इन प्रेमानुरागरजित वचनो से सिह को शाति का अनुभव हुआ और उसने प्रसन्नता से प्राणो का त्याग कर दिया । वही सिह का जीव कालान्तर मे किसान बना है।
तुम्हारे अनुरागमय वचनो की स्मृति के कारण इस किसान को तुम्हारे प्रति प्रीति और मैने इसको मृत्यु के द्वार तक पहुँचाया इसलिए मेरे प्रति वैर का जागरण हुआ है।" इसी कारण मैंने तुमको किसान को प्रतिबोधित करने हेतु भेजा था। तुम्हारे से बोध प्राप्त कर उसने एक बार सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया है और वह एक दिन निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त करेगा।
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गणधर गौतम प्रभु से वृत्तान्त श्रवण कर अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होने भगवान् को वन्दन-नमस्कार किया और तप सयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे ।
संयम की ओर चरण :
विहार-यात्रा अविराम गतिमान थी । भगवान् महावीर भीषण जगलो की यात्रा करते हुए निरन्तर विहारचर्या मे निरत बने हुए, मात्र भव्य जीवो को तिराने के लिए विकट पुरुषार्थ करते हुए उग्र विहार कर वीतिभय नगर पधार गये और वहाँ के मृगवन उद्यान मे तप सयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विराजने लगे ।
वीतिभय नगर मे जिधर देखा, उधर लोग झुण्ड के झुण्ड बनाकर भगवान् के पधारने की चर्चा कर रहे थे एव उनके दर्शन, वदन एव प्रवचन- श्रवण हेतु जाने को लालायित बन रहे थे । समूह मे एकत्रित होकर जनसमुदाय प्रभु के प्रवचन श्रवण हेतु गमनागमन करने लगे। प्रभु ने भी श्रोताओ की उपस्थित परिषद् मे धर्म- गंगा प्रवहमान की ।
"उदायन नरेश ने भी प्रभु के आगमन को श्रवणकर पूरे नगर को स्वच्छ बनवाया और गजारूढ होकर भगवान् के सामीप्य को प्राप्त कर पर्युपासना करने लगा। उसकी प्रभावती आदि प्रमुख महारानियाँ भी भगवान् महावीर की सन्निधि मे पहुँच कर पर्युपासना करने लगी।
भगवान् ने उस परिषद को धर्मकथा फरमायी जिसे श्रवण कर उदायन नरेश इस प्रकार कहने लगे.
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भगवन् । आपका कथन यथार्थ है, मुझे अत्यन्त अभीष्ट लगा है। मैं अभीचिकुमार का राज्याभिषेक करके आपश्री की सन्निधि मे मडित होकर प्रव्रजित होना चाहता है।