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________________ 254 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय भगवान् यद्यपि जान रहे थे कि गाडी मे भरे तिल अचित्त हैं, लेकिन फिर भी भगवान ने अणगारो को तिल ग्रहण करने की अनुज्ञा नही दी, क्योकि भगवान् जानते थे कि यदि मै आज तिल ग्रहण करने की अनुज्ञा दे दूं तो मेरा अवलम्बन लेकर मेरे शिष्य-प्रशिष्य भविष्य मे सचित्त् तिलो को भी ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार व्यवहार नय को बलवान प्रख्यापित करने हेतु भगवान् ने उन्हे तिल ग्रहण करने की आज्ञा नहीं दी। समीप मे अचित्त जल का हृदख भी भरा था। प्यास से तडफते हुए, प्राण के जाने के भय से अणगारो ने उस तालाब का पानी पीने हेतु भी भगवान् से अनुज्ञा मॉगी, लेकिन भविष्य मे सचित्त् जल-सेवन की परम्परा अणगारो मे न हो जाये, इस हेतु उन्होने उस तडाग का जल सेवन करने की भी अनुज्ञा नहीं दी। फलस्वरूप भूख-प्यासादि परीषहो से बाधित अनेक मुनि उस मार्ग मे कालधर्म को प्राप्त हो गये, परन्तु उन्होने गअपवाद मार्ग का आश्रय नही लिया। सयम को प्रधानता देते हुए असयम का पोषण करने की बजाय सयम मे मरण श्रेष्ठ है, इस उच्च आदर्श को ख्यापित किया जो आज भी आकाशदीप की भाति साधुओ का पथ प्रशस्त कर रहा है। कृषक दीक्षा : सयम की अनुपालना का अनुशासनबद्ध तरीके से पालन करते हुए भगवान् महावीर वीतिभय की ओर बढ़ रहे थे। उग्र विहार करते हुए. भीषण परीषहो को सहन करते हुए निरन्तर प्रवास कर रहे थे। ___ एक दिन भगवान् की विहार-यात्रा चल रही थी। मार्ग मे उन्होने देखा कि एक कृषक खेत की जुताई कर रहा था। उसकी गाडी मे क्षीणकाय, जर्जरित शरीर वाले वृद्ध बैल जुते थे। अत्यन्त क्षीणकाय होने से वे सम्यक् तरह से हल नहीं चला पा रहे थे। इस कारण वह कृषक उन बैलो को अतीव निर्दयतापूर्वक पीट रहा था। इतना पीटता जा रहा था कि उन बैलो की चमडी भी छिल गयी और जबरदस्त मार से वे असह्य पीडा का अनुभव कर रहे थे। करुणासागर भगवान् महावीर का हृदय करुणा से आप्लावित हो गया। उन्होने अपनी करुणा बरसाते हुए गणधर गौतम से कहा-गौतम ! यह कृषक अत्यन्त रौद्ररूप धारण करके बैलो को पीट रहा है, तुम उसे जाकर प्रतिबोधित करो। भगवान् का आदेश प्राप्त कर गणधर गौतम उस खेत मे पहुँचे, जहाँ किसान निर्ममता से बैलो को पीट रहा था। गौतम गणधर ने अत्यन्त मधुर (क) प्रख्यापित-बतलाना - ( अपवाद विशेष आपत्ति से पहण योग
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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