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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 255 शब्दो से किसान को सम्बोधित करते हुए कहा- भद्र । तू कितनी निर्दयता से इन वृद्ध बैलो पर प्रहार कर रहा है। इनको कितनी जबरदस्त पीडा हो रही है। कृषक—अरे बाबाजी | मैं जानता हॅू कि इनको अत्यन्त कष्ट हो रहा है। परन्तु ये जब चलते ही नही तब मैं काम कैसे करूँ? मेरे पास इतना पैसा भी नहीं कि मैं दूसरे बैल खरीद सकूँ। इनको नहीं जोतू तो मेरे परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँ? गौतम-अपने परिवार के सदस्यों के लिए मूक पशुओ पर प्रहार कभी ये भी तुम्हारे पारिवारिक सदस्य थे ये असहाय, दीन, मलिन है, तुम इन पर जरा करुणा तो रखो । ये करुण नेत्रो से दया की गुहार कर रहे है। इन्होने घास खाकर भी तुम्हे कितना धान्य, फल और फूल दिये हैं। ताप सहकर भी युवावस्था मे दौड - दौडकर तुम्हारा काम किया है। ये वृद्धावय मे आ गये, इनके स्कन्ध शिथिल पड गये, चमडी ढीली हो गयी, शक्ति अल्प हो गयी, तब इन पर तुम प्रहार कर रहे हो। तुम जरा सोचो तो सही। इनकी करुण दशा देखो तो सही । एक पेट पालने के पीछे इतना घोर पाप ? कृषक- तो तुम्हीं बताओ मैं क्या करूँ? गौतम - अब तुम जीव मात्र पर दया करो । कृषक ने गौतम गणधर की आँखो मे झॉककर देखा तो वात्सल्य का सुषुप्त सागर उमड पडा । वह करुणा छलकते नेत्रों से देखता ही रहा और सोचने लगा- -मैं भी इनके साथ चला जाऊँ तो अच्छा रहेगा। हॉ, श्रेष्ठ रहेगा। यही सोच किसान बोला-भगवन् । क्या मैं आप जैसा सत जीवन अपना सकता हूँ? गौतम-हॉ, जरूर। तब तुम समस्त जीवो के रक्षक बन जाओगे। किसान - तब तुम मुझे दीक्षा दे दो । 1 गौतम गणधर ने उसे वही आर्हती दीक्षा प्रदान की और कहा- चलो, अब मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य के समीप । किसान- मेरे तो धर्मगुरु आप ही हैं, अब किसके पास जाना है। गौतम-तुम्हारे और मेरे, सबके वास्तविक गुरु भगवान् महावीर है। वे अनन्त ज्ञानी हैं। वे ससार के समस्त दृष्ट- अदृष्ट पदार्थों के ज्ञाता हैं। वे अतिशय प्रभाव वाले, जन-जन के नयन - सितारे हैं। अब उन्हीं के पास चलते है । ऐसा कहकर दोनो ने वहाँ से प्रस्थान किया । `चलते-चलते भगवान् के समीप पहुँच जाते हैं, लेकिन यह क्या जैसे ही नवदीक्षित मुनि ने भगवान् को देखा, चेहरे पर हवाइयाँ उडने लगी, मुँह (क) गुहार - पुकार (ख) आर्हती - अरिहतो द्वारा बतलाई गयी
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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