SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 252 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय उस राजकीय कार्य को नहीं किया, लेकिन दूसरे दिन प्रात काल पौषध पार कर उसको बदीपन से रिहा कर दिया, उसे सत्कार-सम्मान देकर मम दासी-पति का पट्टा हटाकर राज्य वापिस लौटा दिया एव स्वर्णगुलिका को दहेज मे दे दिया 110 उदायन का आरोहण : राजा उदायन निरन्तर धार्मिक आराधना करते हुए श्रावक के बारह व्रतो का पालन कर रहा था। एक दिन वह पौषधशाला मे पौषध करके बैठा हुआ था और अर्धरात्रि मे धर्म-जागरण करते हुए इस प्रकार के अध्यवसाय उत्पन्न हुए कि वे ग्राम, आकरण, नगर, खेड, कर्बट, मडम्बप, द्रोणमुख", पत्तनज, आश्रम, सवाह एव सन्निवेश धन्य है, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विचरण करते हैं। वे राजा, तलवर, सार्थवाह आदि धन्य है जो परमपिता परमेश्वर प्रभु महावीर के सौम्य वदन के दर्शन कर उन्हे श्रद्धाभिषिक्त होकर वन्दन-नमस्कार करते हैं, उनकी पर्युपासना करते है। मेरे नेत्र भगवान् के दिव्य दीदार को देखने के लिए तरस रहे हैं, उनकी गम्भीर गिरा को श्रवण करने हेतु लालायित है, मन उनके सान्निध्य की समीहा मे सपृक्त है, प्रभु से दूरीकरण मेरे लिए असहनीय है। अब मै इस विरहाग्नि की तपन से त्रस्त हुआ सौम्य समागम की आकाक्षा सजो रहा हूँ। भगवान् वे तो घट-घट के ज्ञाता है, मेरी भावोर्मियो का प्रत्यक्षीकरण कर रहे है। वे यदि विचरण करते हुए यहाँ पधार जाये तो मैं उनके सान्निध्य मे अपना सर्वस्व समर्पण कर डालें, अपने जीवन की घडियो को समुज्ज्वल बना डालूं। इस प्रकार मिलन की पिपासा सजोये रजनी ने विदाई कब ली, पता ही नहीं चल पाया । भूपति उदायन पौषध पाल कर घर चले गये। शरीर से वे मिट्टी के घरौंदे मे और भावो से स्वय के घर मे आने को समुद्यत हैं। (क) ग्राम-जहा अठारह प्रकार का कर लिया जाता है। (ख) आकर-लोहे आदि धातुओ की खानो मे काम करने वालो के लिए बसा हुआ ग्राम। (ग) नगर-जहां पर अठारह प्रकार का कर नहीं लिया जाता है। (घ) खेड़-जहाँ मिट्टी का परकोटा हो, वह खेड़ या खेड़ा कहा जाता है। (ड) कर्बट-जहाँ अनेक प्रकार के कर लिये जाते है, ऐसा छोटा नगर या कस्बा। (च) मडम्ब-जिस गाँव के चारो ओर अढ़ाई कोस तक अन्य कोई ग्राम नही हो। (छ) द्रोणमुख-जहाँ जल एवं स्थल मार्ग से माल आता है, ऐसा नगर दो मुंह वाला होने से द्रोणमुख कहलाता है। - (ज) पत्तन-जहाँ जल पार करके माल आता हो, वह जल पत्तन तथा जहाँ स्थल मार्ग से माल - आता हो वह स्थल पत्तन कहा जाता है। (झ) आश्रम-जहाँ संयासी तपश्चर्या करते हो वह आश्रम एवं उसके आस-पास बसा हुआ गाँव भी आश्रम कहलाता है। (ब) संवाह-खेती करने वाले कृषक (ट) सनिवेश-यात्री के मुसाफिरी मे रहने का स्थान
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy