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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 251 तब उदायन ने चण्डप्रद्योतन पर चढाई करने का निश्चय किया परन्तु मत्रियो ने कहा-राजन्! चण्डप्रद्योतन कोई सामान्य नृपति नहीं है। उसका अपार सैन्य-बल है। अतएव एक दासी के लिए उसके साथ युद्ध करना बुद्धिमानी नहीं है।
राजा उदायन ने कहा-अन्याय एव अत्याचार को सहन करना अधर्म है। इसका प्रतिकार करना ही चाहिए। इसके लिए उदायन ने दस मित्र राजाओ को युद्ध के लिए तैयार किया और उनकी विशाल सेना सहित उज्जयिनी पर धावा बोल दिया।
दोनो पक्षो की सेनाओ मे घमासान युद्ध होने लगा। कही किसी का सिर कट कर गिर रहा है, कहीं धड, कहीं हाथ और कही पैर । तीरो की बरसात से रक्त की नदियाँ बहने लगी। स्वय चण्डप्रद्योतन भी युद्ध-स्थल पर अनिलगिरि हस्ती पर सवार होकर शत्रुओ को थर्राता हुआ चला आया, चण्डप्रद्योतन का हाथी तीव्रगति से मण्डलाकार घूमता हुआ विरोधी दल को कुचलता हुआ उद्दण्डता से आगे बढ़ रहा था। उसके मद की गध से विरोधी सेना के हस्तियो मे भगदड-सी मच गयी। राजा उदायन को उस स्थिति का पता चला तब उसने गधहस्ती के पैर को तीक्ष्ण शर से बींध डाला। उदायन के तीक्ष्ण बाण की असह्य पीडा से वह धराशायी बन गया और चण्डप्रद्योतन जमीन पर गिर पड़ा। राजाओ ने उसको बदी बनाकर उदायन को सौंप दिया। उदायन ने उसके सिर पर "मम दासी-पति" का पट्टा बाँध दिया।
उदायन बदी बने चण्डप्रद्योतन को लेकर उज्जयिनी से वीतिभय की ओर रवाना हुआ। कुछ मार्ग तय किया कि रास्ते मे ही सवत्सरी का पर्व आ गया। तब राजा उदायन ने एक दिन पहले यात्रा को स्थगित कर अपना पडाव दशपुर नगर मे ही डाल दिया। सवत्सरी की पूर्वसध्या में ही उन्होने चण्डप्रद्योतन को कहलवा दिया कि वे कल उपवास करेगे अतएव तुम अपनी स्वेच्छानुसार भोजन तैयार करवा लेना।
चण्डप्रद्योतन ने सोचा कि शायद उदायन नरेश भोजन नहीं करने के बहाने मुझे विष देना चाहता है, अतएव उसने भी कह दिया कि मै भी कल उपवास करूँगा। उदायन राजा अष्टप्रहर पौषध का प्रत्याख्यान कर सावत्सरिक आराधना करने लगा। सायकालीन प्रतिक्रमण के पश्चात् उदायन राजा ने 84 लाख जीव-योनियो से क्षमायाचना करते हुए चण्डप्रद्योतन से भी क्षमायाचना का प्रसग उपस्थित किया। तब चण्डप्रद्योतन ने कहा-“मम दासी-पति" के कलक का पट्टा उतारो तभी वास्तविक क्षमायाचना होगी। उस समय तो उदायन ने पौषध मे (क) संवत्सरी-वर्ष भर मे एक बार मनाया जाने वाला जैन त्योहार यह चातुर्मास लगने के 50वे
दिन मनाया जाता है। (ख) अष्टप्रहर-सम्पूर्ण दिन रात