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250 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय सेवा की। तब उस पुरुष ने अपना अवसानकाल समीप जानकर कुब्जा दासी को गोलियाँ दे दी और कहा कि तुम जिस मनोरथ की कामना से गोली मुँह मे रखोगी, वह मनोरथ तुम्हारा पूर्ण होगा। दासी अत्यन्त हर्षित हुई और उस पुरुष ने अपना अन्तिम जीवन सुधारने के लिए सयम स्वीकार कर लिया।
गोलियाँ प्राप्त कर कुब्जा दासी ने सोचा कि इनका प्रयोग करके देखना चाहिए। उस समय उसने एक गोली मुँह मे रखी और चितन किया कि मैं रूप और लावण्य मे अप्सरा के समकक्ष बन जाऊँ । तब तत्काल ही वह दिव्यरूप-धारिणी देवी के समान बन गयी। उसके अग-प्रत्यगो से सुवर्ण जैसी कान्ति फूट कर बहने लगी। तब लोगो ने उसका नाम सुवर्णगुलिका (गुटिका) रख दिया। ___एक बार उसके मन मे वासना की उत्ताल तरगे तरगित हुई कि रूप तो अत्यन्त आकर्षक बन गया लेकिन बिना उपभोक्ता के वह व्यर्थ है। मैं इस समय किसको अपना जीवन-साथी बनाऊँ । यहाँ का राजा उदायन तो वृद्ध भी है और
जनकतुल्य भी। तब अन्य ही युवक का भर्ता रूप मे चयन करना चाहिए। किसको अपना जीवन-सर्वस्व सौंपू. किसके चरणो मे समर्पित बने, यों सोचते-सोचते उसका ध्यान उज्जयिनी" के नृपति चण्डप्रद्योतन की ओर गया और मन मे सकल्प कर लिया कि चण्डप्रद्योतन को ही पति बनाना है। यही सकल्प करके उसने दूसरी गोली खा ली।
उस गुटिका के प्रभाव से उसका अधिष्ठायक देव चण्डप्रद्योतन के पास पहुंचा और उसके सामने स्वर्णगुलिका के असीमित रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया। तब चण्डप्रद्योतन ने एक दूत को कुब्जा के पास प्रणय-प्रस्ताव लेकर भेजा | कुब्जा ने भी उस दूत के साथ अपनी प्रणय-निवेदना प्रस्तुत की। तब चण्डप्रद्योतन राजा अनिलगिरि हस्ती पर आरूढ होकर रात्रि मे वीतिभय नगर आया और स्वर्णगुलिका के प्रणय से प्रभावित होकर उसका हरण करके उसे उज्जयिनी ले गया।
दूसरे दिन प्रात काल राजा उदायन अश्वशाला का निरीक्षण करता हुआ हस्तिशाला में आ पहुंचा। हस्ति निरीक्षण करता हुआ वह आश्चर्यचकित हो गया कि हाथियो का मद सूख क्यो गया है? वह इसी तलाश मे आगे बढ रहा था कि उसको गजरत्न के मूत्र की गंध आई। तब उसने तत्काल ही जान लिया कि यहाँ निश्चय ही कोई गधहस्ती आया है। वह गधहस्ती चण्डप्रद्योतन के सिवाय अन्य किसी के पास नहीं है। फिर उसने अधिकारियो से यह भी जान लिया कि स्वर्णगुलिका दासी गायब है। निश्चय ही वह स्त्री-लम्पट उसे भी चुरा ले गया है।
(क) अवसानकाल-मृत्यु का समय