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________________ 246 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय अनुत्तर ज्ञानचर्या का पंचम वर्ष राज्य का कहर संयम की एक झलक : राजगृह का ऐतिहासिक वर्षावास परिसमाप्त कर भगवान् ने चम्पा की ओर विहार किया और ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भगवान् चम्पा पधार गये और उसके बाहर स्थित पूर्णचन्द्र यक्ष के यक्षायतन मे पधार गये। उस समय चम्पा नगरी का राजा दत्त जिनधर्मानुरागी था। जैसे ही उसने श्रवण किया कि भगवान् चम्पा मे पधारे हैं, वह अत्यन्त हर्षित हुआ। अपनी धर्मप्रिया महारानी रक्तवती एव सुपुत्र महाच्चन्द्र युवराज सहित प्रभु के दर्शन एव धर्म-श्रवण हेतु गया। भगवान महावीर ने अपनी गम्भीर गिरा से श्रोताओ को मत्रमुग्ध बना दिया। महाच्चन्द्र ने भगवान की वाणी को हृदय मे स्थान देते हुए श्रावक योग्य व्रतो को ग्रहण किया। भगवान् भी वहाँ से विहार कर गये। एक दिन अर्द्धरात्रि मे पौषध मे धर्म-जागरण करते हुए महाच्चन्द्र के मन मे मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होने से वैराग्य भाव का जागरण हुआ और चिन्तन की चॉदनी मे आत्मा को उज्ज्वल बनाने के लिए भगवान् महावीर के सान्निध्य की आकाक्षा करने लगा कि यदि भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए चम्पा नगरी पधारे तो मै भी प्रभु के चरणो मे प्रव्रजित बनूंगा। इधर महच्चन्द्र दीक्षा अगीकार करने का चिन्तन कर रहा है और चम्पा नगरी वह भी अनेक धार्मिक-अनुराग रखने वालो की भव्यो की निवास दात्रीभूमि है। वहाँ रहने वाले अनेक धनाढ्य व्यक्ति मन मे धार्मिक भावनाओ से ओतप्रोत होकर विकासोन्मुख जीवन जीने वाले है। वहाँ रहने वाला कामदेव गाथापति अठारह हिरणयकोटि मुद्राओ का स्वामी था। उसके छ हिरण्यकोटि निधान मे थे, छ हिरण्यकोटि घर मे और छ हिरण्य कोटि व्यापार मे नियोजित थे। उसके दस-दस हजार गायो के छ गोकुल थे। वह चम्पा का प्रतिष्ठि व्यक्ति था। अनेक व्यक्ति समय-समय पर उससे मत्रण करने हेतु आया करते थे। ___ भगवान् महावीर अपने ज्ञानालोक मे महच्चन्द्र के भावो को जान रहे थे और अनेक भव्यात्माओ के मोक्ष मार्ग स्वीकृत करने के तथ्य की भी जान रहे थे। अतएव उन सब पर अनुकम्पा करने के लिए भगवान् पुन चम्पा पधारे। महच्चन्द्र प्रभु का आगमन जानकर हर्षोल्लास के साथ प्रभु चरणो मे पहुचा और माता-पिता से अनुमति प्राप्त कर प्रव्रजित हो गया है।' कामदेव गाथापति को भी जब यह ज्ञात हुआ तब वह भी अपने रथ पर (क) चम्पा- जिस समय भगवान् दुबारा चम्पा पधारे उस समय वहाँ का राजा जितशत्रु था क्योंकि कामदेव के वर्णन मे जितशत्रु का उल्लेख मिलता है।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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