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________________ __ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 245 मनुष्यो का एक बालाग्र, पूर्वविदेह मनुष्यो के आठ बालाग्रो से एक लिक्षा। काल यद्यपि भगवान् महावीर के चारित्र ग्रन्थो मे काल का वर्णन पहले है और धान्य की योनि के लिए बाद मे निर्देश है लेकिन भगवती सूत्र मूल पाठ मे धान्य की योनि का कथन पहले एव काल का वर्णन उसके बाद मे होने से यही क्रम दिया है। देखिये भग, अभयदेव, वही, पत्राक 499-505 v गोभद्र यद्यपि कई आचार्यों ने गोभद्र सेठ के बारे मे ऐसा उल्लेख किया है कि शालिभद्र जब छोटा था तब उसके पिता गोभद्र ने दीक्षा ले ली (भ महावीर एक अनुशीलन आ देवेन्द्रमुनि) लेकिन चारित्र ग्रन्थो मे शालिभद्र के विवाह के पश्चात् ही गोभद्र की दीक्षा हुई थी। ऐसा उल्लेख हुआ है। त्रिषष्टिश्लाकाकार ने भी यही माना है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष चारित्र, वही, सर्ग-10, पृ 218 ॥ वैभारगिरी यह पर्वत राजगृह के पॉच पर्वतो मे एक है। महावीर के समय मे इसके पास पाँच सौ धनुष लबा एक गर्म पानी का ह्रद था, जिसका जैन सूत्रो मे महातपोपतीर" नाम से उल्लेख हुआ है और उसे "प्रस्रवणअर्थात "स्त्रोत" कहा है। आज भी उसके पास गर्म जल के कतिपय कुण्ड हैं जो भीतर के उष्ण जलस्रोतो से हर समय भरे रहते हैं।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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