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244: अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-- द्वितीय
अनुत्तरज्ञानचार्य का चतुर्थ वर्ष टिप्पणी
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राजगृह
यह नगर महावीर के उपदेश और वर्षावास के केन्द्रो मे सबसे बडा और प्रमुख केन्द्र था। इसके बाहर अनेक उद्यान थे किन्तु महावीर के समवसरण का स्थान गुणशिलक उद्यान था, जो राजगृह से ईशान दिशा मे था। राजगृह राजा श्रेणिक के राज्य काल मे मगध की राजधानी थी । यहाँ के सैकडो राजवशी और अन्य नागरिक स्त्री -पुरुषो को महावीर ने अपने श्रमणसघ मे दाखिल किया था। हजारो मनुष्यो ने जैनधर्म को स्वीकार किया था। जैनसूत्रो मे राजगृह मे महावीर के दो सौ से अधिक बार समवसरण होने के उल्लेख है ।
आजकल राजगृह "राजगिर" नाम से पहचाना जाता है, जिसके पास मोहागिरि पर्वतमाला के पाँच पर्वत है, जो जैनसूत्रो मे वैभारगिरि विपुलाचल आदि नामो से उल्लिखित है । राजगिर बिहार प्रान्त मे पटना से पूर्व-दक्षिण व गया से पूर्वोत्तर मे अवस्थित हैं।
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औपमिककाल
जिस काल की सख्या रूप मे गणना की जा सके, उसे गणित योग्य काल कहते हैं। काल का सूक्ष्मतम भाग समय होता है। असख्यात समय की एक आवलिका होती है। 256 आवलिका का एक क्षुल्लक भव होता है । 17 से कुछ अधिक क्षुल्लक भव का एक उच्छवास निश्वास होता है। इससे आगे की सख्या स्पष्ट है। सबसे अन्तिम गणनीय काल शीर्ष प्रहेलिका है जो 194 अको की सख्या हे ।
758263253073010241157973569975696406218966848080183296
इन चौपन अको पर 140 बिन्दियाँ लगाने से शीर्ष प्रहेलिका का प्रमाण आता है, इसके आगे का काल औपमिक है। अतिशय ज्ञानी के अतिरिक्त साधारण व्यक्ति उसको गिनती करके उपमा के बिना ग्रहण नहीं कर सकते इसलिए उसे औपमिक काल कहा है ।
श्री अनुयोगद्वार चूर्णि, आ हरिभद्रसूरि पृ 56-57
III बालाग्र
आठ रथरेणुओ के मिलने से देवकुरु, उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यो के आठ बालाग्रो से हरिवर्ष और रम्यक् वर्ष के मनुष्यो के आठ बालाग्रो से हेमवत, हिरण्यवत मनुष्यो का एक बालाग्र, हैमवत, हिरण्यवत के मनुष्यो के आठ बालाग्रो का पूर्वविदेह