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समारूढ होकर धर्मदेशना श्रवण करने गया।
भगवान् की अर्थ-गाम्भीर्य युक्त ससार तिराने वाली वाणी को श्रवण कर उसका रोम-रोम पुलकने लगा और उसने प्रभु से निवेदन किया कि मैं इनता सामर्थ्य तो नहीं रखता कि गृहवास छोडकर आपके चरणाम्बुजो मे मुण्डित बन जाऊँ लेकिन मै अभी आपके मुखारबिन्द से श्रावक के ग्रहण योग्य बाहर व्रतो को स्वीकार करना चाहता हूँ।
तब भगवान् ने उसके निर्मल भावो को जानकार श्रावक योगय बारह व्रतो को स्वीकार करवाया । वह भी गृहस्थ धर्म की अनुपालना करता हुआ अपने जीवन को कल्याण मार्ग पर अग्रसर करने लगा। भगवान् भी महच्चन्द्र की दीक्षा एव कामदेव के व्रत अगीकार करने के पश्चात् ग्रामानुग्राम विचरण करने लगे।
प्रतिबोध प्रभावती का : __उस समय मे सिधुसौवीर जनपद की राजधानी वीतिभय" नगर थी, वहाँ का राजा उदायन उस युग का परम प्रतापी नरेश हिमगिरि-सी शोभा का वरण कर रहा था। राजा उदायन सिधुसौवीर प्रमुख सोलह जनपद के वीतिभय आदि तीन सौ त्रेसठ नगर का स्वामी था। वह महासेन आदि दस मुकुटबद्ध राजा तथा अन्य बहुत-से राजा, ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि पर आधिपत्य करता हुआ राज्य का सचालन कुशलतापूर्वक कर रहा था।
उसकी प्रभावती नामक पटरानी कमनीय अग-प्रत्यगो वाली, मृगनयनी, हास-परिहास से मन को मत्र-मुग्ध करने वाली वैशाली गणराज्य के अधिपति चेटक की दुहिता थी महारानी प्रभावती ने समय आने पर एक शिशु का प्रसव किया जिसका नाम अभीचिकुमार रखा गया। अभीचिकुमार युवराज प्रदेशी राजा के राज्य (शासन), राष्ट्र (देश), बल (सेना), वाहन (रथ, हाथी, अश्वादि), कोष, कोठार (अन्न भडार), पुर एव अन्त पुर की स्वय देखभाल करता था। राजा उदायन की सहोदरा भगिनी के भी एक पुत्र था, जिसका नाम केशीकुमार था।
प्रभावती देवी पितृ-गृह के सस्कारो से समन्वित जिनधर्म के प्रति दृढ आस्थावान थी, लेकिन राजा उदायन तापसो का भक्त था। महारानी प्रभावती उदायन को जिनधर्मानुरागी बनाने मे सदैव तत्पर रहती थी, लेकिन उसको अपने प्रयासो मे सफलता नहीं मिली। फिर भी उसने अपने पुरुषार्थ का परित्याग नहीं किया। एक बार राजा उदायन वीणा बजा रहा था और प्रभावतीदेवी नृत्य *महावीर कथा के अनुसार कामदेव ने महच्चन्द्र के साथ ही चम्पा नगरी मे गृहस्थ धर्म स्वीकार किया था।
- महावीर कथा, गोपालदास जीवाभाई पटेल, पृष्ठ-307