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240 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय दिया, उसका मतलब तुम दुकान और बही खाते सम्हालो और लेन-देन से आठ करोड मिल जायेगे। दूसरा लडका खेती द्वारा आठ करोड प्राप्त कर लेगा। तीसरा पशुधन से आठ करोड की आय करेगा और चौथा छोटा है अत उसे आठ करोड नगद दे दिये। चारो फैसला सुनकर अत्यन्त हर्षित हुए और अपनी बहिन लक्ष्मी का धन्ना के साथ विवाह कर दिया। यह धन्ना का सप्तम विवाह था। ।
धन्ना का अष्टम विवाह लक्ष्मीपुर के धनपाल नामक कजूस सेठ की पुत्री से हुआ। हुआ यो कि धनपाल के यहाँ कभी भी कोई याचक आता तो वह उसे कुछ भी नहीं देता था। एक बार किसी धूर्त ने भिखारी का वेश बनाकर धनपाल को खुश कर दिया। सेठ ने उसे कुछ देने का वचन दिया, लेकिन रोज-रोज टरकाता रहा। एक दिन वह धूर्त भिखारी जिद्द करके बैठ गया कि मुझे बताओ तुम किस दिन क्या दोगे?
सेठ ने कहा-अमुक दिन आना और तुम मेरी जिस वस्तु पर हाथ रख दोगे वह तुम्हे दूंगा। वह भिखारी चला गया।
इधर सेठ ने सोचा कदाचित् यह मेरी लडकी गुणमाला को मॉग लेगा तो अनर्थ हो जायेगा। यह सोचकर सेठ ने उस भिखारी के पास जाकर कहा-तुम्हे चाहिए जो हीरे, पन्ने ले लो लेकिन वह नहीं माना। तब सेठ ने धन्ना को बुलाया। तब धन्ना ने कहा-निश्चित रहो। इधर भिखारी आया तो सेठ की लडकी छत पर खडी थी। चढने के लिए नसैनी लगा रखी थी। भिखारी ने ज्योही नसैनी के हाथ लगाया धन्ना ने कहा-नसैनी ले जाओ। तुम्हारी शर्त पूरी हुई। धूर्त देखता ही रह गया। सेठ ने अपनी पुत्री का विवाह धन्ना के साथ कर दिया। यह धन्नाजी का आठवॉ विवाह था।
इस प्रकार छ पत्नियो को लेकर धन्ना राजगृह पहुंचे। वहाँ पर कुसुमश्री व सोमा ने उसका खूब स्वागत-सत्कार किया। सुभद्रा की सेवा से प्रसन्न होकर धन्ना ने उसे पटरानी का पद दिया और धन्ना ने राजगृह का मत्री पद सम्हाल लिया और अभयकुमार उज्जयिनी से कुछ दिनो पश्चात् आ गया। धन्ना और अभय मैत्री भाव से सब कार्य करने लगे।
इधर धन्ना के भाइयो ने ऐसा व्यवहार किया कि उनका सब-कुछ चौपट हो गया। वे वहाँ से माता-पिता और पत्नियो को लेकर भटकते-भटकते राजगृह पहुँचे। धन्ना से मिले। अब तीनो भाइयो का द्वेष समाप्त हो गया। तीनो ने धन्ना से क्षमायाचना की और सुखपूर्वक रहने लगे।
तभी राजगृह मे केवलज्ञानी मुनि आये तब धन्ना ने मुनि से अपना पूर्वभव पूछा। तब मुनि ने पूर्वभव बताते हुए कहा -
प्राचीन काल मे पइट्ठन नामक गाँव था। वहाँ पर कात्यान नामक विधवा