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अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 239 मी राजा ने बतलाई। तब धन्ना राजा सहित जगल मे गया। वहाँ वीणा बजाई। वह हिरणी भी आई, उसके गले से हार निकाला। गीतकला की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई। राजा जितारि ने धूम-धाम से उसका विवाह धन्ना के साथ सम्पन्न किया।
राजा जितारि का मत्री था, सुबुद्धि । उसके एक कन्या थी सरस्वती। उसने भी चतिज्ञा कर रखी थी कि जो मेरी पहेलियो का उत्तर देगा उसी को मैं वरण करूँगी।
धन्ना की प्रतिभा को देखकर सुबुद्धि ने सरस्वती को धन्ना के समक्ष प्रस्तुत केया और कहा तू इनसे अपनी पहेलियाँ पूछ । तब उसने पहेली रखी
दान दिया जाता गगा मे, लेने वाला मर जाता। देने वाला घोर नरक मे, पडा-पडा फिर पछताता।।
अर्थात्-गगा मे दान देते हैं तो लेने वाला मर जाता है और दान देने वाला घोर नरक मे जाता है, इसका क्या तात्पर्य?
तब धन्ना उत्तर देते हैं - लेने वाली दान मछलिया, दाता धीवर पल (मास) का दान। इसका जो फल होता, जान रहे सारे विद्वान् ।।
अर्थात्-मछुआरा मछलियाँ पकडने के लिए गगा मे आटा आदि डालता है जिसमे कॉटा रहने से खाकर मछलियाँ मर जाती है। इस कारण वह धीवर मरकर नरक मे जाता है।
सरस्वती को पहेली का उत्तर मिल गया। अब धन्ना ने पूछा-ऐसी कौनसी वस्तु है जो नाक, कान और नारगी मे दूर रहती है जबकि निम्ब, तुम्ब और मामा मे मिल जाती है?
सरस्वती उत्तर नहीं बता पाई, तब धन्ना कहते हैं-अधर एव ओष्ठ। सरस्वती के साथ धन्ना का छठा विवाह सम्पन्न हुआ।
इसी लक्ष्मीपुर नगर मे एक सेठ रहता था 'पत्रामलक' | उसके चार पुत्र थे। वह मृत्युशय्या पर लेटा था तब उसने चारो पुत्र को कहा तुम आपस मे प्रेम से रहना, मैंने चार कलशो मे तुम्हारा नाम लिखकर बराबर धन दिया है, तुम बॉट लेना। यो कहकर सेठ ने प्राण त्याग दिया।
तब चारो पुत्रो ने पिता का दाह सस्कार करके कलशे खोले। एक कलश में मात्र कागज और कलम निकले, दूसरे मे मिट्टी-ककर, तीसरे मे हड्डियाँ और चौथे कलश मे आठ करोड स्वर्ण मुद्राएं, जिन्हे देखकर पुत्र दग रह गये। वे राजा जितारि के पास न्याय मॉगने गये। राजा भी आश्चर्यचकित रह गया। तब धन्ना ने कहा-देखो, मैं इसका रहस्य बतलाता हूँ। जिस पुत्र को कागज-कलम