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238 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय
शतानीक-तुम वास्तव मे रत्न-परीक्षा कर सकते हो, तब तुम्हे वह रत्न दिखाता हूँ। यो कहकर शतानीक ने वह रत्न निकालकर धन्ना को दिखाया जिसे देखकर धन्ना बोला-राजन् ! यह सहस्रकिरण रत्न है। जिसके पास यह रत्न होता है वह राजा युद्ध मे कभी पराजित नहीं होता। इस रत्न के रहने पर व्यन्तरादि कृत उपसर्ग शीघ्र समाप्त हो जाते हैं। इसके द्वारा प्रक्षालित जल पीने पर सर्व रोग विनष्ट हो जाते है। यह रत्न सुख, शाति, समृद्धिदायक है।
राजा-कैसे जाने कि यह सहस्रकिरण रत्न है?
धन्ना-राजन् ! आप चावल के दानो से भरा हुआ एक थाल मगवाओ और उसमे यह रत्न डाल दो और इसे छत पर रख दो। चावल के लोलुप पक्षी दाना चुगने आयेगे लेकिन वे इसमे से एक दाना भी नहीं चुग पायेगे।
शतानीक ने तुरन्त वैसा ही किया। एक बडे थाल मे चावल के दाने बिखेर दिये। उसमे वह रत्न रख दिया। पक्षी दाना चुगने आये, लेकिन रत्न के प्रभाव से एक दाना भी चुग नहीं पाये। रत्न हटाते ही दाना चुगने लगे।
तब राजा ने धन्ना को पाँच सौ गॉव, हाथी, घोडे दिये और सौभाग्यमजरी के साथ उसका विवाह कर दिया।
धन्ना ने कौशाम्बी के पास धनपुर नामक एक नगर बसाया और वहाँ सरोवर खुदवाना प्रारम्भ किया। इधर राजगृह मे धन्ना के जाने के पश्चात् उसके परिवार की दुर्दशा होने लगी। तब धन्ना के माता, पिता, भाई, भाभी एव सुभद्रा धन्ना को खोजते-खोजते धनपुर आये और वहाँ मिट्टी खोदने का काम करने लगे। धन्ना ने उन्हें पहिचान लिया, उन्हे घर ले गया और धनपुर मे वे धन्ना के पास आनन्द से रहने लगे।
तभी राजगृह से राजा श्रेणिक का बुलावा आया धन्ना के लिए कि उन्हे राजा अतिशीघ्र बुलवा रहे है। तब धन्ना अपने माता-पिता, भाई-भाभी को धनपुर छोडकर अपनी पत्नियो के साथ राजगृह की तरफ रवाना हुआ। तभी रास्ते में लक्ष्मीपुर नगर था, वहॉ के राजा जितारि की पुत्री गीतकला ने एक बार कुशल वीणा-वादन करते हुए जगल के पशु-पक्षियो को एकत्रित कर लिया। वीणा-वादन बद होने पर भी एक हरिणी मूर्तिवत् खड़ी रही। उस समय गीतकला ने एक मोतियो का हार उतार कर उसके गले मे डाल दिया जिसकी आहट प्राप्त कर वह जगल मे भाग गई। तब गीतकला ने प्रतिज्ञा कर ली कि जो कोई इस हरिणी के गले से हार निकालेगा, वही मेरा पति होगा।
राजा जितारि हर सभव ऐसा वर खोज रहा था। धन्ना भी सयोग से वहाँ पहुंच गया। राजा के दरबार मे जब गया तब राजा ने स्वागत-सत्कार देकर उन्हे बिठाया और वार्तालाप चलने लगा। बात-बात मे अपनी पुत्री की प्रतिज्ञा