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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग- द्वितीय : 241 बुढिया रहती थी। उसके दत्त नामक पुत्र था। वह गाय-बछडे चरा कर आजीविका चलाता था। एक दिन पर्व पर घर-घर खीर बनी । दत्त ने भी खीर खाने की जिद्द की। माता ने पडोसिनो से सब चीज माँगकर खीर बनाई । पुत्र को खीर परोस कर माता बाहर गयी, तब पारणे मे मुनि आये, दत्त ने सारी खीर मुनि को बहरा दी। माता आई तब दत्त थाली चाट रहा था। मॉ ने सोचा - पुत्र बहुत भूखा है, उसने हडिया मे बची खीर भी दे दी। खीर खाने पर पुत्र के पेट मे दर्द हुआ और शुभ ध्यान करते हुए मरा और मरकर वह जीव धन्यकुमार धन्ना बना है । वह धन्ना तुम ही हो । जिन चार स्त्रियो ने तुम्हारी माँ को खीर बनाने की सामग्री दी एव चार ने अनुमोदन किया, वे आठो मरकर तुम्हारी पनियाँ बन गयी है ।
तब तीनो भाइयो का पूर्वभव पूछा । तब मुनि कहने लगे
सुग्राम नामक नगर मे तीन लकडहारे थे। तीनो दोपहर जगल मे लकडी काटकर भोजन करने बैठे, इतने मे मुनि आये। तीनो ने मुनि को भोजन बहरा दिया। शाम को तीनो घर गये तो उन्हे भोजन नहीं मिला। तब उन्होने दान की निन्दा की कि ऐसे दान से क्या लाभ जिससे हमे भोजन भी नहीं मिला। इस प्रकार कुवचन कहकर वे मृत्यु को प्राप्त होने पर तुम्हारे भाई बने, लेकिन दान की निन्दा करने से उन्होने महान कष्ट पाया । मुनि की देशना श्रवण कर तीनो भाई, भाभी, माता, पिता को विरक्ति आ गयी। उन्होने सयम लेकर जीवन सफल किया । 17
इधर धन्ना अब आठ पत्नियो के साथ भोग भोग रहा है और उधर सुभद्रा को पता चला कि मेरा भाई शालिभद्र प्रतिदिन एक-एक पत्नी का परित्याग कर रहा है तो सुभद्रा का मन भ्रातृ - वात्सल्य मे निमज्जित हो गया । वह भाई का प्यार स्मृतिपटल पर लाकर आँसूओ से अपनी आँखो को नम करने लगी। उस समय सुभद्रा अपने पति को नहला रही थी और गरम-गरम ऑसू की एक बूँद धन्ना की पीठ पर जा गिरी।
तब धन्ना ने सुभद्रा से
हो?
पूछा- क्या बात है ? आज तुम क्रंदन क्यो कर रही
सुभद्रा - मेरा भाई सयम लेगा, वह प्रतिदिन एक-एक पत्नी का परित्याग कर रहा है। जब वह सयम ले लेगा तो मै बिना भाई की बहन हो जाऊँगी । धन्ना- अरे सजनी । तेरा भ्राता कायर है । वह प्रतिदिन एक-एक पत्नी को त्यागता है। यदि शूरवीर होता तो एक साथ बत्तीस को त्यागता ।
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सुभद्रा - स्वामिन् । कहना सरल है, लेकिन कर दिखलाना कठिन है । धन्ना - अच्छा, लो अभी जाता हॅू सयम लेने। तुमने मेरे भीतर का वीरत्व
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