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मुझे घर जाकर विचारो मे अवगाहन कर भगवन के श्रीमुख
236 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय कि नगर के बाहर चार ज्ञान के धारक धर्मघोष आचार्य पधारे है। वह उनके दर्शन के लिए जाता है। आचार्य भगवन् की धर्मदेशना श्रवण करने के पश्चात् शालिभद्र ने आचार्यश्री से प्रश्न किया कि किस कारण से मै स्वामी बन सकता हू ? तब आचार्यश्री ने कहा कि तुम सयम ग्रहण कर लो तो सम्पूर्ण जगत् के स्वामी बन जाओगे। शालिभद्र ने आचार्यश्री की बात सुनकर निश्चय किया कि मुझे घर जाकर माता से दीक्षा की अनुमति ग्रहण करनी है।15
विरक्ति के विचारो मे अवगाहन करता हुआ वह घर आया और माता से निवेदन किया-मातेश्वरी ! मैं आज आचार्य भगवन् के श्रीमुख से वीतराग वाणी श्रवणकर आया हूँ। वह मुझे अत्यन्त रुचिकर हुई है।
माता भद्रा-बेटा | तेरा सौभाग्य है। शालिभद्र-माता ! मै अब दीक्षा लेकर स्वय का नाथ बनना चाहता हूँ।
माता-अरे | यह क्या? अरे यह क्या सुनते ही धडाम से धरतीतल पर गिर पड़ी।
पखे आदि से हवा करके भद्रा की मूर्छा दूर की। मूर्छा दूर होने पर वह रुदन करने लगी और शालिभद्र की बत्तीस ही पत्नियाँ, वे भी रुदन करने लगीं। कहने लगी-नाथ | तुमने हमारे साथ पाणिग्रहण करके हमे अपना बनाया है। हम तुम्हारे भरोसे यहाँ आई हैं। आप हमे छोडकर क्यो जा रहे है? हम यहाँ किसके साये मे रहेगी? आपके बिना हमारा जीना दुभर हो जायेगा । हम क्या करेगी । ___ भद्रा विलाप करती हुई कहती है-बेटा | तू मेरा इकलौता पुत्र है, तू चला जायेगा तो मेरा क्या होगा ? मेरा सहारा तो तू ही है।
शालिभद्र-मातेश्वरी | आज तक धर्म के अतिरिक्त कोई भी साथ नहीं निभा पाया है। ये सारे सासारिक रिश्ते-नाते तो नश्वर हैं, ये तो अवश्यमेव त्यागने योग्य हैं, मुझे तो अपना नाथ बनना है इसलिए मातेश्वरी मैं सयम ग्रहण करूँगा।
पत्नियॉ-स्वामिन् । हमारा क्या होगा? __ शालिभद्र-तुम भी हमारे पथ का अनुसरण करना और त्याग मार्ग पर चलना। मैने दृढ निश्चय कर लिया है। मैं इस पथ से विचलित होने वाला नहीं
हूँ|
माता भद्रा ने देखा कि अब मेरा लाल यहाँ रहने वाला नहीं तो कहा-बेटा अच्छा, ऐसा कर कि तू थोडा-थोडा त्याग कर, जिससे तुझे अभ्यास हो जायेगा, फिर सयम ग्रहण कर लेना।