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234 : अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय
राजा श्रेणिक अभयकुमार के साथ मार्ग की शोभा निरखता - निरखता भद्रा के महल के बाहर पहुँच गया।
स्वर्ण स्तम्भों पर बना वह महल देदीप्यमान देव- विमान ही लग रहा था। इन्द्र नीलमणि के तोरण द्वारो पर खचित स्वस्तिक बने मोतियो की श्रेणियाँ, स्थान-स्थान पर दिव्य वस्त्रो के चदोवे और सुगन्धित पदार्थों की महक से वह सुगंध - गध- वट्टिकावत् प्रतीत हो रहा था ।
भद्रा सेठानी ने महल के बाहर आकर महाराजा का स्वागत सत्कार किया और आदर सहित महल मे प्रवेश कराया। पहली मंजिल मे प्रवेश किया तब भद्रा ने बतलाया कि यह मजिल तो दासियो के निवास योग्य है, सुनकर राजा का आश्चर्य सीमा पार कर गया ।
दूसरी मंजिल पर प्रवेश करते ही प्रकाश के चकाचौंध मे राजा की आँखे आँखमिचौनी खेलने लगी। तब भद्रा ने बतलाया यह मजिल मुनीम गुमाश्तो के लिए है । तीसरी मंजिल मे पहुॅचे तो भद्रा सेठानी ने बतलाया- यहाँ मेरा निवास स्थान है। चतुर्थ मजिल पर जाकर राजा को थकान-सी होने लगी तब भद्रा सेठानी ने वहीं सिहासन पर नृपति श्रेणिक एव अभयकुमार को बिठलाया और निवेदन किया कि शालिभद्र सातवीं मंजिल पर है, उसे मैं आपकी सेवा मे उपस्थित करती हॅू। ऐसा कहकर स्वय भद्रा सेठानी शालिभद्र के पास पहुँचती है और शालिभद्र से कहती है-बेटा । आज घर पर महाराजा पधारे हैं, तुम जल्दी नीचे चलो।
शालिभद्र - माताजी, आप सब जानते ही है, जो मूल्य देना है वह आप ही दे दो ।
भद्रा - अरे । वह कोई खरीदने की वस्तु नहीं है । वे तो इस राजगृह नगर के स्वामी और हमारे नाथ है। उनके दर्शन हेतु तुम्हे नीचे चलना होगा। शालिभद्र (खेद करता हुआ ) - ओह । मेरे इस नश्वर सासारिक वैभव को धिक्कार है । मेरे सिर पर भी कोई नाथ है
नाथ है
तो मैं क्या
अनाथ हॅू
?
भद्रा - बेटा ! जल्दी करो, राजा तुम्हारा इतजार कर रहे है ।
माता के कहने से शालिभद्र स्त्रियो सहित नीचे उतरा और उसने राजा श्रेणिक को प्रणाम किया ।
शालिभद्र का अपार सौन्दर्य देखकर राजा श्रेणिक के नैत्र स्तम्भित रह गये । उसे अपनी भुजाओ मे अतीव वात्सल्य से पकड लिया और गोद में बिठाकर सिर पर हाथ फिराने लगा ।